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Tuesday 16 July 2013

८.प्रतापगढ़ (चितोड़ ) राज्य 9.डबोक (उदयपुर ) राज्य चौहान राजवंश

८.प्रतापगढ़ (चितोड़ ) राज्य :- वर्तमान प्रतापगढ़ पर भी वि.की 11 वीं शताब्दी की प्रथम चरण में चौहानों का राज्य था | यह चौहान प्रतिहार भोजदेव के सामंत थे || वि .सं.१००३ का धाराप्रदक गाँव (चितोड़ जिला ) का शिलालेख जानकारी देता है की चौहान इंद्रराज की प्राथना पर महासामंत दंड दिया | शिलालेख में पहले प्रतिहार राजाओं का देवशक्ति से भोजदेव तक वंशक्रम दिया है | इसके बाद इंद्रराज चौहान के पूरवजों का वर्णन किया है | लिखा है चौहान वंश में गोविन्दराज नामक राजा हुआ | उसके बाद दुर्लभराज राजा हुआ फिर उसका पुत्र अंगज हुआ | उस अंगज से इंद्रराज हुआ | इंद्रराज चौहान ने दामोदर के पुत्र माधव से दान करवाया | वर्तमान प्रतापगढ़ क्षेत्र पर शासन करने वाले इस चौहान वंश का निकास कहा से हुआ ? मालूम नहीं पड़ता | इंद्रराज से पहले उसके तीन पूरवज अंगज दुर्लभराज व् गोविन्दराज के नाम शिलालेख में मिलते है | इससे चितोड़ क्षेत्र में चौहानों का समय वि.सं. 940 के लगभग पहुँच जाता है | चौहान सामंत (सांभर ) के वंशधरों में गुहक ११ जो गोविन्दराज के नाम से भी जाना गया है का समय ९३० वि.के करीब पड़ता है | इस वृष्टि से इन चौहानों का सम्बन्ध सांभर वालों से जुड़ने का साक्ष्य नहीं मिलता |
9.डबोक (उदयपुर राज्य ):- वर्तमान डबोक क्षेत्र में १३०० वि.के लगभग का चौहानों का ऐक शिलालेख मिला है जिससे चौहानों के कई नामो की जानकारी मिलती है | सबसे पहले महेंद्र पाल ,फिर सुर्वगपाल ,मंथनसिंह ,क्षात्रवर्म ,दुर्लभराज ,भूतालरक्षी ,समरसिंह ,देवार्नोराज व् सुलक्षणपाल और छाहड़ का समय १३०० विकर्मी है अतः महेन्द्रपाल का समय 9 पुश्त पहले ११२० वि.के लगभग पड़ता है अतः यह वंशा नाडोल के लक्षमण के पुत्र विग्रहपाल के पुत्र महेन्द्रपाल या लक्षमण के पुत्र आसराज (अधिरज) के पुत्र महेंद्र का वंश होना चाहिए | शिलालेख में भी नाडुल नाम आया है | ( शिलालेख पंक्ति 22 हस्य नदडुल नगेर शिपू द्व्तीयों भूतलारक्षोराज्ये )|

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