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Saturday 13 July 2013

४.चौहान राजवंश जालोर राज्य

४.जालोर राज्य :- जालोर भी चौहानों का मुख्य राज्य रहा था | वि.सं.१२३८ ई.१२८१ नाडोल के अश्वराज के पोत्र ओए आल्हण के पुत्र कीर्तिपाल परमारों से जालोर छीन कर स्वयं राजा बन बैठे | जालोर का प्राचीन नाम जाबालीपुर व् किले का नाम स्वर्णगिरी मिलता है | यहाँ से निकलने वाले चौहान सोनगिरा नाम से विख्यात हुए | कीर्तिपाल के पुत्र समरसी थे | समरसी ने गुजरात के राजा भीम द्वतीय के साथ अपनी पुत्री लीलादेवी का विवाह कर पुनः मधुर सम्बन्ध स्थापित किये | समरसी के उतराधिकारी उसके पुत्र उदयसिंह हुए | उदयसिंह ने राज्य की सीमा में वृधि की | उदयसिंह ने मंडोर ( १२६२-१३१४ वि.के मध्य ) जीता नाडोल को भी अपने अधीन किया व लवण प्रसाद को हराकर गुजरात की स्थति कमजोर कर दी | उदयसिंह के पुत्र चाचिंगदेव ने भी राज्य का विस्तार किया | चाचीदेव के बाद उनके पुत्र सामंतसिंह (वि सं. १३३९-१३६२ ) ने अलाऊधिन खिलजी हुयी बढती हुयी शक्ति को देखकर अपने पुत्र कान्हड़देव को जालोर का राज्य दे दिया |

अलाऊधिन खिलजी का जालोर पर आक्रमण :- वि.सं.१३५५  १२९८ ई.में अलाऊधिन खिलजी के सेनापति अलुगखाखा और नसरतखां ने गुजरात विजय अभियान किया | उन्होंने जालोर के कान्हड़ देव से जालोर राज्य से होकर जाने का रास्ता माँगा परन्तु कान्हड़ देव ने यह कहकर मना कर दिया की विधर्मी गोमांस खाते है और ब्राह्मण विरोधी है | अतः कान्हड़ देव अपने राज्य से होकर आगे बढ़ने की इजाजत नहीं दी | इस उतर का प्रतिकूल प्रभाव हुआ परन्तु पहले गुजरात जितना अनिवार्य था | अतः मुसलमान सेना गुजरात की तरह बढ़ गयी और सोमनाथ के मंदिर को टोडा | जब मुस्लिम सेना लोट रही थी | तो कान्हड़ देव ने मुस्लिम सेना पर आक्रमण किया | मुस्लिम सेना को हारकर भागना पड़ा | परन्तु अलाऊधिन का ध्यान चितोड़ व् रणथम्भोर विजयी पर हि लगा रहा | अतः उनको जीतकर विक्रमी संवत १३६२ ई.१३०५ में ऍन उल मुल्क सुल्तान के नेत्रत्व में ऐक सेना जालोर भेजी परन्तु मुस्लिम सेना नायक ने आदरपूर्वक संधि का आश्वासन दिलाकर कान्हड़ देव को दिल्ली भेज दिया |
कान्हड़ देव का पुत्र वीरमदेव दिल्ली दरबार में रहता था वहा रहते ऐक शहजादी फीरोज का वीरमदेव से प्रेम हो गया | परन्तु विध्मी होने के कारन वीरमदेव तेयार नहीं हुआ और जालोर लोट आया | अलाऊधिन की दक्षिण विजय के प्रयास में जालोर बाधक हो सकता है आदी कारणों से प्रेरित होकर उसने जालोर पर आक्रमण की योजना बनायीं | मार्ग में सिवाना पड़ता है | सिवाना का सुद्रढ़दुर्ग उस समय सातल देव चौहान के अधिकार में था | सातलदेव भी बहुत वीर था वह सिवाना की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बराबर लगा हुआ था | यह दुर्ग चौहानों ने परमारों से छीना था | वह बिना युद्ध किये खिलजी सेना को इधर से जाने नहीं देता था | सातलदे ने मुसलमानों से मुकाबला किया उसने मुस्लिम सेना के बहुत से प्रयत्नों को विफल किया | मुस्लिम सेना वहा कई mahine पड़ी रही परन्तु उसे विजय नहीं मिली | सीढ़ियों से दुर्ग में घुसने के प्रयत्न हुए परन्तु राजपूतों के प्रक्षेपयंत्रों ने सबको विफल कर दिया | फिर पश्विकों की सहायता से ऊँचे बुर्जों तक चढ़ने की कोशिस की और ऐक राजद्रोही भावले की सहायता से गोरक्त डलवाकर किले के कुंडों को अपवित्र कर दिया | खाध्य सामग्री भी ख़त्म हो गयी तब वीरबालाओं ने जोहर व्रत किया और राजपूतों ने किले के बाहर आकर अपने प्राणोंत्सर्ग किये तब कहीं मुस्लिम सेना का किले पर अधिकार हुआ | सुल्तान द्वारा किले का नाम खेदाबाद रखा गया |
सुल्तान खिलजी दिल्ली लौट गया परन्तु उसकी फौज कमालूधिन के नेतृत्व में जालोर की और बढ़ी | इधर कान्हड़ देव ने तेयारी की | उसने मालदेव को बड़ी तथा वीरमदेव को भाद्रजून भेजा | मुस्लिम फौज ने जालोर के किले को घेर लिया| काफी दिन गुजरने पर भी किले पर जीतने की आशा न रही तब एकदहिया राजपूत को राज्य का लालच देकर अपनी और मिला लिया  | उसने किसी तरह शत्रु को किले में घुसने का मार्ग बता दिया | बीका की पत्नी को पती द्वारा किये गए कुक्त्य का पता चला उसने आपने पति को रात्री में हि मार दीया और इसका पता कान्हड़देव को दे दिया | परन्तु शत्रु किले में घूस चूका था | दुर्ग की रक्षा हेतु कन्धायी,जैतादेवड़ा ,लूणकरण ,अर्जुन आदी ने शत्रुओं से लड़कर वीरगति पायी | कान्हड़देव भी सच्चे राजपूत की तरह लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ | कान्हड़ देव का पुत्र वीरमदेव बची हुयी शक्ति से हि शत्रु से लड़ता रहा परन्तु शत्रुओं से घिर जाने के कारन अधिक समय तक युद्ध का संचालन नहीं कर सका और स्वयं ने पेट में कटार मारकर इहलीला समाप्त की | वीरागनायों ने जोहर व्रत किया | वीरमदेव का सिर दिल्ली ले जाया गया और शहजादी को दिया गया | वह उसके साथ सती होने को तेयार हुयी और अंत में दाह संस्कार कर शहजादी ने स्वयं यमुना में कूदकर आत्महत्या कर ली | इस प्रकार अलाऊधिन खिलजी विक्रमी १३६८ में जालोर पर अधिकार हो गया |
जालोर राजवंश
१.कीर्तिपाल (११६३-११८२ई.)
२.समरसिंह (११८२-१२०५)
३.उदयसिंह (१२०५-१२५७)
४.चाचिगदेव (१२५७-१२८१)
५.सामंतसिंह (१२८२-१२९६)
६.कान्हड़देव (१२९६-१३१४ )

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