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Wednesday 31 July 2013

देवड़ा राजवंश की उत्पति

चौहानों की खाप देवड़ा :- देवड़ा चौहानों की ऐक प्रसिद्ध खाप हे | वेसे अलग से कोई राजवंश नहीं हे परन्तु 36 राजपूत राजपूत राजवंशो में देवरा कुल ( वंश ) का उल्लेख् हुआ है |
''दोयमत कवान गुरुअ गोहल गोहिलपुत |
चापोत्कट परिहार राव राठोर रोस जुत ||
देवरा टांक सैंधव अनंग योतिक प्रतिहार दधिषट |
राजतरंगी ( १२०५ वि.) ज्ञात होता हे की १२०५ वि. से पूर्व हि 36 राजपूत राजवंश बन चुके थे | उस समय देवड़ा चौहानों की उत्पति हो चुकी थी और भीनमाल पर उनका स्वतन्त्र शासन हो चूका था | चौहानों की खाप होने के बावजूद भी देवड़ा अलग राजवंश क्यूँ गिना गया ? कारन का पता नहीं लगता | वेसे चन्द को सूचि का देवरा वंश कोई स्वतन्त्र वंशा होना चाहिए पर स्वतन्त्र देवड़ा वंश काम कहीं उल्लेख नहीं मिलता हे | अतः चौहानों की इसी खाप को हि 36 राजपूत राजवंशों में ऐक वंशा मानकर वर्णन किया जा रहा हे |
उत्पति :- यह तो निश्चिन्त हे की देवड़ा चौहानों की हि खाप हे परन्तु उसकी उत्पति कहा से हुयी | इस सन्दर्भ में बड़े विवाद हे देखते हे सन्दर्भ में क्या -क्या उल्लेख मिलते हे |

१.चाहुवाण घणकरा सारा राव लाखन नाडुल धणी |
तिणरीपीढ़ी हुवो | तिणरे घरै बाचा छल देवी जी आया छै |
तिण रे पेट रा बेटा तीन हुआ | देवड़ा कहाणा छै ''

२ .नेणसी ने आगे लिखा हे आसराव नाडलू सिकार रमतो हुतो सु बड़ो दूठ राजवी हुवो | तिणनु देवी बिहाडण लागी सुं आसराव बी है बांण हिरण नूं कहण लागी - तोनू हूँ तूठी : तू जाणे सु मांग | तरे आसराव देवी रो रूप देखने जाणीयो '' इसडी बैर बहे तो भली |'' तरे देवी नूं कह्या तूं म्हारे बैर हुयी धरे रही | तरे बाचा छल आई | तरे कह्यो ''अटारी बात हूँ पहली छुं ,मानू जांणरे पेट ,कहे छै चार बीटा हुआ - माणकराव २ मोकल ३ अल्हण ४ हुवा

३.चीबा चौहानों के लिए नैनसी लिखते हे - सिरोही रे देस चीबा भला राजपूत छै | इण रो हि बड़ो धडो छै एही देवड़ा हीज छै | तिणा मोह ऐक साख चीबा री कहावे छै |
नेणसी के इन कथनों का सार यह निकला की चौहान लाखन के वंशज आसराज की पत्नी देवी स्वरूप थी | अतः उसके वंशज देवड़ा कहलाये | जिस समय वाचाछडलदेवी उनकी पत्नी बनी तब आसराव का स्थान नाडोल था और चीबा भी देवडों की साख हे | अब बाँकीदास क्या लिखते हे देखते हे |

१.''सोनगरा महणसी रे घरवासे देवी रहे | उण रे पुत्र हुवो नाम देवो ,देवरे वंस रा देवड़ा कहानो | महणसी राव रे दूजा बेटा हुवा ज्यारी विगत -बालोजी ? जिणरा बालोत ,चीबो महणसी रो जिनरा चीबा है | महणसी रो अभो उणरा अभा | बोडो महणसी तिवारा बोडा ए च्यारू बेटा |

बाँकीदास दूसरी जगह लिखते हे :- सोनगरा माह सुं देवड़ा निसरिया | देवड़ा सुं बोडा निसरीया ,बालोत चीबा अहीब ए खापा निसरी | देवड़ो निरबाण देवड़ा बंस रा निरबाण कहावे |

बाँकीदास के कथनों का सार यह हे की महणसी नाम के सोनगरे की राणी देवी स्वरुप थी | उसके पुत्र देवा हुआ | इसी के वंशज देवड़ा हे | इसके साथ हि देवा की भाईयों बाला ,चीबा ,अबाह के वंशजों को भी देवड़ा लिखा हे पर देवड़ा अगर महणसी के पुत्र देवा के वंशज हे तो उसके भाईयों की संतान देवड़ा नहीं हो सकती बकिदास ने निरवानो को भी देवड़ा लिखा हे परन्तु नरदेव निर्वाण ने वि.सं.११४१ में डाहलियों से खंडेला लिया | यह नरदेव महणसी के पुत्र से पहले हुआ | अतः निर्वाण भी देवड़ा केसे हुए ? इन सब का सार यह हुआ की महणसी के पुत्र देवराज से पूर्व देवड़ा थे और न हि सोनगरों से देवड़ो का निकास हो सकता हे क्यूंकि सोनगरों के आदी पुरुष कीतू ( कीर्तिपाल ) ने वि,सं,१२३८ में जालोर पर अधिकार किया था | अतः १२२२ वि.में देवडों की उपस्थति से यह कथन मिथ्या हो जाता हे |सिरोही की ख्यात में लिखा हे की राव मानसिंह के पुत्र का नाम देवराज था ,जिसके नाम से उनके वंशज देवड़ा कहलाये परन्तु यह ठीक नहीं हे | जिसका देवी का सम्बन्ध नेणसी के समय आसराज की पत्नी के रूप में था ,वह बाद में बाँकीदास के समय महणसी ( मानसिंग ) के सन्दर्भ में जुड़ गया और बाद की ख्यातों ने उसे अपना लिया | बाद में लिखी अन्य ख्यातों ,पुस्तकों आदी में देवडों की उत्पति के सन्दर्भ में किसी लाखन के पुत्र सोभित पुत्र देवराज से देवड़ो की उत्पति लिख दी  तो किसी ने सांभर के चौहान मानिकराव के वंश में हुए देवराज से देवड़ो की उत्पति लिख दी |

शिलालेख पर द्रष्टि डाले :- वि.सं.१२२२ के दो शिलालेख जो आबू परवत पर अचलेश्वर मंदिर के बहार लगे हे ,उनमे देवड़ा खाप की उपस्थित अंकित की हे | इससे ये जाना जा सकता हे की वि.सं.,१२२२ के समय देवड़ा खाप प्रसिद्ध हो चुकी थी | महनसी के पुत्र देवराज के वंशज नहीं हो सकते | नेणसी ने जिस आसराज से यानी जेन्द्रराज के पुत्र आसराव से उत्पति अंकित की हे | उस आसराज का प्रमाणित समय सेवाड़ी शिलालेख से ( वि.११६७) और बाद के शिलालेखों में ११७२ तक जाता हे | अतः उसके वंशजो का देवड़ा होना भी सत्य के नजदीक नहीं जाता हे क्यूंकि ११७२ और १२२२ के बीच 50 वर्ष का समय होता हे इतने कम समय में आसराज के पोत्रों ने देवड़ा के रूप में प्रसिद्ध प्राप्ति नहीं की होगी | वि.सं,११41 में नरदेव निर्वाण ने खंडेला पर अधिकार कर लिया था और नरदेव नरदेव निर्वाण हि देवड़ा हि था | वि.सं.११४१ घटना तो आसराज ( ११६७-११७१ के पूर्व की घटना हे | नेणसी ने ऐक जगह लिया हे की विजेसी आल्नोत ने संवत ११४१ में सांचोर जीती नेणसी ने आसराज के पुत्र आल्हण का पुत्र विजेसी लिखा हे | अगर इस आसराज का पोत्र विजेसी हो तो आसराज ११६७-११७२ का पोत्र विजेसी ११४१ वि.में सांचोर विजयी केसे कर सकता हे ? किल्हण की राजतरंगिनी सं.१२०५ से ज्ञात होता हे की उस समय तक 26 राजवंश बन चुके थे | ये सब घटनाये बताती हे की देवड़ा की उत्पति आसराज से भी नहीं हुयी हे |लगता हे की नरदेव निर्वाण भी आसराज का पुत्र नहीं था और न हि सम्बन्ध कहीं और से हे | नेणसी ने कवी माला आसिया की वंशावली दी हे उसमे मछरीक का पुत्र आल्हंण हे | सिरोही के बडवा की बही में भी मछरीक का पुत्र आल्हंण लिखा हे | लगता हे विजेसी इसी आल्हण का पुत्र हे और नरदेव भी इसी आल्हण का पुत्र होना चाहिए | नाम साम्य के कारन भ्रांतिवंश बाद की ख्यातों में आसराज ११६७ के पुत्र आल्हंण के पुत्र रूप में विजेसी व् नरदेव का नाम जोड़ दिया लगता हे | इसी कारन यहाँ वंशावली गटमट हो गयी है |
नेणसी ने लिखा हे की जेन्द्रराज के पुत्र आसराव के चार पुत्र माणकराव ,आल्हण ,मोकल व् अज्ञात हुए | माणकराव के दो पुत्र संभरण व् अजबराव थे | अजबराव के खिंची हुए | लेकिन खिंची भी इस आसराव के पोत्र अजबराव से नहीं हो सकते क्यूंकि धड़ाव् ( कड़वड ) के ११९४ के शिलालेख में अंकित हे की लाखन खिंची के पुत्र की स्त्री सती हुयी | इससे सिद्ध होता हे की ११९४ वि.से पूर्व खिंची खाप प्रसिद्ध हो चुकी थी | ११९४ वि. में लाखन का पुत्र था | अतः लाखन का समय ११९४-२०=११७४ विक्रमी हुआ | जेन्द्रराव के पुत्र आसराव का समय ११६७-११७१ वि. हे | अतः इस आसराज के पोत्र अजाबराव से खिंची चौहानों की भी उत्पति नहीं हो सकती |
यदि इस आसराज से देवड़ो की उत्पति मानी जाए तो सोनगरों भी देवड़ा की हि खाप हे परन्तु सोनगरा अपना निकास देवड़ा चौहानों से नहीं मानते है | इन सब बातों से स्पष्ट होता हे की देवड़ा चौहानों की उत्पति जेन्द्रराज ?(जिन्द्रराव ) के पुत्र आशाज ( आसराव ) से नहीं हुयी तब प्रसन्न उठता हे की फिर देवडों की उत्पति कहाँ से हुयी ? लूम्भा के अचलेश्वर शिलालेख १३७७ वि.की नामावली ,सिरोही के बडूवा की नामावली व् माला आसिया का सिरोही के देवड़ा के वंशक्रम सम्बन्धी छपय सिद्ध करते हे की देवड़ो का आदी पुरुष जेन्द्रराज ( नाडोल ) का पुत्र आसराज ( आसराव ) नहीं लाखन ( लक्षमण ) का पुत्र आसराज था |
नाडोल के चौहानों में ऐक नाम के कई व्यक्ति होने के कारन ( जैसे -लक्षमण के पुत्र का नाम भी आसराज ,प्रताप उर्फ़ आल्हण के पुत्र का नाम भी आसराज | लक्षमण के पुत्र विग्रहपाल के पुत्र का नाम महेंद्र और लक्षमण के पुत्र आसराज के पुत्र का भी नाम महेंद्र | आसराज के पुत्र का नाम कीर्तिपाल और जिन्द्रराव के पुत्र का भी नाम कीर्तिपाल | मछरीक के पुत्र का नाम भी आल्हंण और जिन्द्रराव के पुत्र आसराज के पुत्र का भी नाम आल्हण | आगे चलकर इससे भ्राँतिया उतपन्न हो गयी और लक्षमण ( नाडोल ) के पुत्र आसराज उर्फ़ अधिराज का वृतांत तथा उसके पुत्रों का प्रसंग जेन्द्रराज के पुत्र आसराज इतिहास में प्रसिद्ध होने के कारन साथ जुड़ गया | जिससे सोनगरो ,देवड़ो ,खिंचियों ,हाडो और बागडियों चौहानों का वंशक्रम गटगट हो गया | यही कारन रहा जिससे देवड़ा अपनी उत्पति सोंगीरों से मानने लगे और जब यह बात कही जाती हे की अगर महनसी के पुत्र देवराज से देवडों की उत्पति हुयी तो इनसे पुराने जो देवड़ा थे वो कोन थे ? तो स्पष्टीकरण दिया जाता हे की वे देवदे दुसरे थे | वे देवडे अब लोप हो गए | परन्तु अच्लेस्वर १३७७ शिलालेख ,सिरोही के बडूवे की बही वमाला आसिया का वंशक्रम सम्बन्धी छपय यह सिद्ध करता हे की देवड़ा लक्षमण के पुत्र आसराज के वंशज थे और सिरोही के देवड़ा वही देवड़ा हे ,दुसरे नहीं हे यहाँ  उपयुर्क्त सभी नामावलियों तथा राजावालियाँ लूम्भा देवड़ा के पूर्वजों की हे | इनसे मालूम पड़ता हे की देवड़ा नाडोल के आसराज ( अश्वराज ) | ( ११६७-११७२) के वंशज नहीं ,पुत्र आसराज ( अधिराज -अश्वराज ) के वंशज हे | लाखन ( लक्षमण ) के बाद बलिराज ( सोभित का पुत्र ) नाडोल का शासक हुआ और सोभित धार ( भीनमाल ) का शासक हुआ जैसे सेवाड़ी शिलालेखों जेठ वदी ८ संवत ११७६ से मालूम पड़ता हे | शोभित के बाद आसराज लक्ष्मनोत का पुत्र महेंद्र भीनमाल का शासक हुआ | इस कारन नामावली में आसराज के बाद महेंद्र का सीधा नाम अंकित न कर पहले सोभित लिखा गया हे और तत्वपश्चात महेंद्र | सब द्रष्टियों से विचार करने पर लाखन ( नाडोल ) के वंश की वंशावली इस प्रकार बनेगी | लक्षमण के पुत्र आसराज ( अश्वपाल -अधिराज ) की राणी बाचाछल देवी स्वरूप थी यानि ऐक तरह की देवी थी | इस कारन देवी के पुत्र देविरा -देवरा -देवड़ा कहलाये | देवड़ा चौहानों का प्रथम राज्य भीनमाल आबू व् द्वित्य सिरोही राज्य था 

11 comments:

  1. kya dewda rajputo ki kahani hai

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    1. Haa hai bhai follow me Instagram ---deora____

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  2. Thanks for your Information Udaipur or gogunda ke deora rajputo ki history ho to bataiye

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  3. लखावत देवडा के बारे साक्षिप्त में बताए

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  4. मेरी जाति राजपूत माली गौत्र चौहान है ।
    राव की बहियो में बोड़ा के वंशज लिखा है । परम्परा में पूर्वज अपने को चौहान हि कहलाते हैं परन्तु हमें सोनार यानी सोनगरा भी कहते हैं । वंश परम्परा व राव बड़वौ की पुस्तके की द्रष्टि से देखें तो चौहान कुलद्रुमक का लिखा ठीक लगता है चौहान सोनगरा बौड़ा लिखा भी है वह वंश परम्परा में चलता आ रहा । मामीजी के वंशज चंद्रावती राजवंश से हे सोनगरा कीतर्तीपाल के वंशज बोड़ा देवड़ा सहित पांच पुत्र थे

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    1. आप माली है चौहान कहने से आप क्षत्रिय नही बनने वाले

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  5. निर्वाणों की उत्पत्ति लक्ष्मण के पुत्र आसराज/अश्वपाल/अधिराज के पुत्र नरदेव से है लेकिन इतिहास में कहीं कहीं मानिकराव के चौबीस पुत्रों में से एक भगतराज जी से निर्वाण की उत्पत्ति बताई गई है ,कौन सही है ?

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  6. Gopal Singh Deora4 April 2023 at 01:14

    मेवाड़ का देवड़ा राजवंश सिरोही से 1495 मैं महाराज कृति राव के नेतृत्व में मेवाड़ की सहायता के लिए आए थे

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