अनादिकाल काल से चले आ रहे सनातन धर्म की जय हो

youtube

Tuesday 3 September 2013

परमार ( पंवार ) राजवंश की उतपत्ति और राज्य

परमार पंवार राजवंश
परमार 36 राजवंशों में माने गए है | ८वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी विक्रमी तक इनका इस देश में विशाल सम्राज्य था  इन वीर क्षत्रियों के इतिहास का वर्णन करने से पूर्व उतपत्ति के सन्दर्भ देखे | परमारों तणी प्रथ्वी

उत्पत्ति :- परमार क्षत्रिय परम्परा में अग्निवंशी माने जाते है इसकी पुष्टि साहित्य और शिलालेख और शिलालेख भी करते है | प्रथमत: यहाँ उन अवतरणों को रखा जायेगा जिसमे परमारों की उतपत्ति अग्निकुंड से बताई गयी हे बाद में विचार करेंगे | अग्निकुंड से उतपत्ति सिद्ध करने वाला अवतरण वाक्पतिकुंज वि. सं. १०३१-१०५० के दरबारी कवी पद्मगुप्त द्वारा रचित नवसहशांक -चरित पुस्तक में पाया जाता है जिसका सार यह है की आबू -पर्वत वशिष्ठ ऋषि रहते थे | उनकी गो नंदनी को विश्वामित्र छल से हर ले गए | इस पर वशिष्ठ मुनि ने क्रोध में आकर अग्निकुंड में आहूति दी जिससे वीर पुरुष उस कुंड से प्रकट हुआ जो शत्रु को पराजीत कर गो को ले आया जिससे प्रसन्न होकर ऋषि ने उस का नाम परमार रखा उस वीर पुरुष के वंश का नाम परमार हुआ |

भोज परमार वि. १०७६-१०९९ के समय के कवि धनपाल ने तिलोकमंजरी में परमारों की उत्पत्ति सम्बन्धी प्रसंग इस प्रकार है |
वाषिष्ठेसम कृतस्म्यो बरशेतरस्त्याग्निकुंडोद्रवो |
भूपाल: परमार इत्यभिघयाख्यातो महिमंडले ||
अधाष्युद्रवहर्षगग्दद्गिरो गायन्ति यस्यार्बुदे |
विश्वामित्रजयोजिझ्ततस्य भुजयोविस्फर्जित गुर्जरा: ||

मालवा नरेश उदायित्व परमार के वि.सं. ११२९ के उदयपुर शिलालेख में लिखा है |
''अस्त्युवीर्ध प्रतीच्या हिमगिरीतनय: सिद्ध्दं: (दां) पत्यसिध्दे |
स्थानअच ज्ञानभाजामभीमतफलदोअखर्वित: सोअव्वुर्दाव्य: ||४||
विश्वमित्रों वसिष्ठादहरत व (ल) तोयत्रगांतत्प्रभावाज्यग्ये वीरोग्नीकुंडाद्विपूबलनिधनं यश्चकरैक एव ||५||
मारयित्वा परान्धेनुमानिन्ये स ततो मुनि: |
उवाच परमारा (ख्यण ) थिर्वेन्द्रो भविष्यसि ||६||

बागड़ डूंगरपुर बांसवाडा के अर्थुणा गाँव में मिले परमार चामुंडाराज द्वारा बनाये गए महादेव मंदिर के फाल्गुन सुदी ७ वि. ११३७ के शिलालेख में लिखा है - कोई प्रचंड धनुषदंड को धारण किया हुआ था और अपनी विषम द्रष्टि से यज्ञोपवित धारण कीये हुए था और अपनी विषम द्रष्टि से जीवलोक को डराने का पर्यत्न करता हुआ शत्रुदल के संहार्थ पसमर्थ था | ऐसा कोई प्रखर तेजस्वी अद्भुत पुरुष उस यज्ञ कुंड से मिला |
यह वीर पुरुष वसिष्ठ की आज्ञा से शत्रुओं का संहार करके और कामधेनु अपने साथ में लेकर ऋषि वशिष्ठ के चरण कमलों में नत मस्तक होता हुआ उपस्थित हुआ |उस समय वीर के कार्यों से संतुष्ट होकर ऋषि ने मांगलिक आशीर्वाद देते हुए उसको परमार नाम से अभिहित किया |
परमारों के उत्पत्ति सम्बन्धी ऐसे हि विवरण बाद के शिलालेख व् प्रथ्वीराज रासो आदी साहित्यिक ग्रंथो में भी अंकित किया गया है |
इन विवरणों के अध्धयन से मालूम होता हे की 11वि, १२ वि. शताब्दी के साहित्यिक व् शिलालेखकार उस प्राचीन आख्यान से पूरी तरह प्रभावित थे जिसमे कहा गया है की ऐक बार वशिष्ठ की कामधेनु गाय को विश्वामित्र की सेना को पराजीत करने के लिए कामधेनु ने शक, यवन ,पल्ह्व ,आदी वीरों को उत्पन्न किया |

फिर भी यह निस्संकोच कहा जा सकता है की 11वि. सदी में परमार अपनी उत्पति वशिष्ठ के अग्निकुंड से मानते थे और यह कथानक इतना पुराना हो चूका था जिसके कारन 11वि. शताब्दी के साहित्य और शिलालेखों में चमत्कारी अंश समाहित हो गया था वरना प्रकर्ति नियम के विरुद्ध अग्निकुंड से उत्पत्ति के सिद्धांत को कपोल कल्पित मानते है पर ऐसा मानना भी सत्य के नजदीक नहीं हे कोई न कोई अग्निकुंड सम्बन्धी घटना जरुर घटी है जिसके कारन यह कथानक कई शताब्दियों बाद तक जन मानस में चलता रहा है और आज भी चलन रहा है | अग्निवंश से उत्पत्ति सम्बन्धी इस घटना को भविष्य पुराण ठीक ढंग से प्रस्तुत करता है | इस पुराण में लिखा है |

''विन्दुसारस्ततोअभवतु |
पितुस्तुल्यं कृत राज्यमशोकस्तनमोअभवत ||44||
एत्सिमन्नेत कालेतुकन्यकुब्जोद्विजोतम:  |
अर्वूदं शिखरं प्राप्यबंहाहांममथो करोत      ||45|
वेदमंत्र प्रभाववाच्चजाताश्च्त्वाऋ क्षत्रिय: |
प्रमरस्सामवेदील च चपहानिर्यजुर्विद:  ||46||
त्रिवेदी चू तथा शुक्लोथर्वा स परीहारक: |
                 भविष्य पुराण

भावार्थ यह हे की विंदुसार के पुत्र अशोक के काल में आबू पर्वत पर कान्यकुब्ज के ब्राह्मणों में ब्रह्म्होम किया और वेद मन्त्रों के प्रभाव से चार क्षत्रिय उत्पन्न किये सामवेद प्रमर ( परमार ) यजुर्वेद से चाव्हाण ( चौहान ) 47 वें श्लोक का अर्थ स्पष्ट नहीं है परन्तु परिहारक से अर्थ प्रतिहार और चालुक्य ( सोलंकी) होना चाहिए | क्यूंकि प्रतिहारों को प्रथ्विराज रासो आदी में अग्नि वंशी अंकित किया गया है और परम्परा में भी यही माना जाता है |
भविष्य पुराण के इन श्लोकों से कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आती है | प्रथमतः आबू पर किये गए इस यज्ञ का समय निश्चिन्त होता हे यह यज्ञ माउन्ट आबू पर सम्राट अशोक के पत्रों के काल में २३२ -से २१५ ई. पू. हुआ था |दुसरे यह यज्ञ वशिष्ठ और विश्वामित्र की शत्रुता के फलस्वरूप नहीं हुआ | बल्कि वेदादीधर्म के प्रचार प्रसार के लिए ब्रहम यज्ञ किया और यह यज्ञ वैदिक धर्म के पक्ष पाती चार पुरुषार्थी क्षत्रियों के नेतृत्व में विश्वामित्र सम्बन्धी प्राचीन ट=यज्ञ घटना को भ्रम्वंश अंकित किया गया | वशिष्ठ की गाय सम्बन्ध घटना के समय यदि परमार की उत्पत्ति हो तो बाद के साहित्य रामायण ,महाभारत ,पुराण आदी में परमारों की उतपत्ति का उल्लेख आता पर ऐसा नहीं है | अतः परमारों की उत्पत्ति वशिष्ठ -विश्वामित्र सम्बन्धी घटना के सन्दर्भ में हुए यज्ञ से नहीं , अशोक के पुत्रों के काल में हुए ब्रहम यग्य से हुयी मानी जानी चाहिए |
आबू पर हुए यज्ञ को सही परिस्थतियों में समझने पर यह निश्किर्य है की वैदिक धर्म के उत्थान के लिए उसके प्रचार प्रसार हेतु किसी वशिष्ठ नामक ब्राहमण ने यग्य करवाया , चार क्षत्रियों ने उस यज्ञ को संपन्न करवाया ,उनका नवीन ( यज्ञ नाम ) परमार ,चौहान . चालुक्य और प्रतिहार हुआ | अब प्रसन्न यह हे की वे चार क्षत्रिय कोन थे ? जो इस यज्ञ में सामिल हुए थे | अध्धयन से लगया वे मूलतः  सूर्य एवम चंद्र वंश क्षत्रिय थे |
अग्नि यज्ञ की घटना से पूर्व परमार कोन था ? इसकी विवेचना करते हे | पहले उन उदहारण को रखेंगे जो परमारों के साहित्य ,ताम्र पत्रादि में अंकित किये गए है और तत्वपश्चात उनकी विवेचना करेंगे|
सबसे प्राचीन उल्लेख परमार सियक ( हर्ष ) के हरसोर अहमदाबाद के पास में मिले है वि. सं. १००५ के दानपत्र में पाया गया हे जो इस प्रकार है -

परमभट्टारक महाराजाधिराज राज परमेश्वर
श्रीमदमोघवर्षदेव पादानुधात -परमभट्टारक्
महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीमदकालवर्षदेव -
प्रथ्वीवल्लभ- श्रीवल्लभ  नरेन्द्रपादनाम
तस्मिन् कुलेककल्मषमोषदक्षेजात: प्रतापग्निहतारिप्क्ष:
वप्पेराजेति नृप: प्रसिद्धस्तमात्सुतो भूदनु बैर सिंह (ह) |१ |
द्रप्तारिवनितावक्त्रचन्द्रबिम्ब कलकतानधोतायस्य कीतर्याविहरहासावदातया ||२||
दुव्यरिवेरिभुपाल रणरंगेक नायक:  |
नृप: श्री सीयकसतमात्कुलकल्पद्र मोभवत  |३|

यह सियक परमार जिसके पिता का नाम बैरसी तथा दादा का नाम वाक्पति "( वप्पेराय ) था , या वाक्पति मुंज परमार ( मालवा ) का पिता था और राष्ट्रकूटों का इस समय सामंत था | अतः इस ताम्रपत्र में पहले आपने सम्राट के वंश का परिचय देता हे और तत्त्व पश्चात् आपने दादा और आपने पिता का नाम अंकित करता है | भावार्थ यह है की - परमभट्टारक महाराजाधिराज राज परमेश्वर श्री मान ओधवर्षदेव उनकें चरणों का ध्यान करने वाला परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीमान अकालवर्षदेव उस कुल में वप्पेराज ,बैरसी ,व् सियक हुए | इससे अर्थ निकलता है परमार भी राष्ट्रकूटों से निकले हुए है थे | अधिक उदार अर्थ करें तो राष्ट्र कूटों की तरह परमार भी यादव थे यानी चन्द्रवंशी थे |

ब्रहमक्षत्रकुलीन: प्रलीनसामंतचक्रनुत चरण: |
सकलसुक्रतैकपूजच श्रीभान्मुज्ज्श्वर जयति  ||

इस प्रकार विक्रमी की 11वि. सदी सो वर्ष की अवधि में हि परमारों की उत्पति के सन्दर्भ में तीन तरह के उल्लेख मिलते हेई अग्निकुंड से उत्पत्ति ,राष्ट्र कूटों से उत्पति ब्रहम क्षत्र कुलीन | इतिहासकार सो वर्ष की अवधि के हि इन विद्वानों ने तीन तरह की बाते क्यूँ लिख दी ? क्या इन्होने अज्ञानवश ऐसा लिखा ? हमारा विचार यह हे की तीनो मत सही है | मूलतः चंद्रवंशी राष्ट्रकूटों के वंश में थे | अतः प्रसंगवश १००५ वि.के ताम्र पात्र अपने लिए लिखा की जिस कुल में अमोध वर्ष आदी राष्ट्र कूट राजा थे उस कुल में हम भी है | परमार आबू पर हुए यज्ञ की घटना से सम्बंधित था अतः परमारों को अग्निवंशी भी अंकित किया गया | ओझाजी ने ब्रहमक्षत्र को ब्राहमण और क्षत्रिय दोनों गुणों युक्त बताया है | परमार पहले ब्राहमण थे फिर क्षत्रिय हो गए |
हमारे प्राचीन ग्रन्थ यह तो सिद्ध करते हे की बहुत से क्षत्रिय ब्राहमण हो गए मान्धाता क्षत्रिय के वंशज , विष्णुवृद्ध हरितादी ब्राहमण हो गए | चन्द्रवंश के विश्वामित्र , अरिष्टसेन आदी ब्राहमण को प्राप्त हो गए | पर ऐसे उदहारण नहीं मिल रहे हे जिनसे यह सिद्ध होता हे की कोई ब्राहमण परशुराम में क्षत्रिय के गुण थे | फिर भी ब्राहमण रहे ,शुंगो ,सातवाहनो ,कन्द्वों आदी ब्राहमण रहे | परमारों को तो प्राचीन साहित्य में भी क्षत्रिय कहा गया हे | यशोवर्मन कन्नोज ८वीं शताब्दी के दरबारी कवी वप्पाराव ( बप्पभट ) ने राजा के दरबारी वाक्पति परमार की क्षत्रियों में उज्वल रत्न कहा है | अतः परमार कभी ब्राहमण नहीं थे क्षत्रिय हि थे | ब्राहमण से क्षत्रिय होने की बात कल्पना हि है | इसका कोई आधार नहीं है ओझाजी ने ब्रहमक्षत्र का अर्थ ब्राहमण व् क्षत्रिय दोनों गुणों से युक्त बतलाया हे पर हमारा चिंतन कुछ दूसरी तरह मुड़ रहा हैं | यहाँ केवल '' ब्रह्मक्षेत्र '' शब्द नहीं है | यह ब्रहमक्षत्र कुल है | प्राचीन साहित्य की तरह ध्यान देते हे तो ब्रहमक्षत्र कुल की पहचान होती है |
श्रीमद भगवद गीता में चंद्रवंशी अंतिम क्षेमक के प्रसंग में लिखा है -
दंडपाणीनिर्मिस्तस्य  क्षेमको भवितानृप:
ब्रहमक्षत्रस्य वे प्राक्तोंवशों देवर्षिसत्कृत: ||( भा.१ //22//44 )
इसकी व्याख्या विद्वानो ने इस प्रकार की है -
तदेव ब्रहमक्षत्रस्य ब्रहमक्षत्रकुलयोयोर्नी: कारणभूतो
वंश सोमवंश: देवे: ऋषिभिस्रचसतत्कृत अनुग्रहित इत्यर्थ  |
अर्थात इस प्रकार मेने तुम्हे ब्राहमण और क्षत्रिय दोनों की उत्पति स्थान सोमवंश का वर्णन सुनाया है |
( अनेक संस्क्रत व्यख्यावली टीका भागवत स्कंध नवम के ४८६ प्र. ८७ के अनुसार ) इस प्रकार विष्णु पुराण अंश ४ अध्याय २० वायु पुराण अंश 99 श्लोक २७८-२७९ में भी यही बात कही गयी है | बंगाल के चंद्रवंशी राजा विजयसेन ( सेनवंशी ) के देवापाड़ा शिलालेख में लिखा गया है -
तस्मिन् सेनान्ववाये प्रतिसुभटतोत्सादन्र्व (ब्र) हमवादी |
स व्र ह्क्षत्रियाँणजनीकुलशिरोदाम सामंतसेन: ए . इ. जि . १ प्र ३०७
इसमें विजयसेन के पूर्वज सामंतसेन को ब्रहमवादी को ब्रहमवादी और ब्रहमक्षत्रिय कुल का शिरोमणि कहा है |
इन साक्ष्यों में ब्रहमक्षत्र कुल चन्द्रवंश के लिए प्रयोग हुआ है | किसी सूर्यवंशी राजा के लिए ब्रहमक्षत्र ? कुल का प्रयोग नजर नहीं आया |इससे मत यह हे की चंद्रवंशी को ब्रहमक्षत्र कुल भी कहा गया है | सोम क्षत्रिय + तारा ब्राहमनी =बुध | इसी तरह ययाति क्षत्रिय क्षत्रिय + देवयानी ब्राह्मणी =यदु | इस प्रकार देखते हे की चन्द्रवंश में ब्राहमण और क्षत्रिय दोनों जातियों का रक्त प्रवाहित था | संभवतः इस कारन चन्द्रवंश की और हि संकेत है | इस प्रकार परमार मूलतः चंद्रवंशी आधुनिक आलेख इस बात का समर्थन करते है - पंवार प्रथम चंद्रवंशी लिखे जाते थे | बहादुर सिंह बीदासर
पंजाब में अब भी चंद्रवंशी मानते है| अम्बाराया परमार ( पंवार ) चंद्रवंशी जगदेव की संतान पंजाब में है | और फिर परमार आबू के ब्रहमहोम में शामिल होने से अग्निवंशी भी कहलाये | आगे चलकर अग्निवंशी इतना लोकपिर्य हो गया की परमारों को अग्निवंशी हि कहने लग गए और शिलालेखों और साहित्य में अग्निवंशी हि अंकित किया गया |
इसके विपरीत परमारों के लिए मेरुतुन्गाचार्य वि. १३६१ स्थिवरावली में उज्जेन के गिर्दभिल्ल को सम्प्रति ( अशोक का पुत्र ) के वंश में होना लिखता है | गर्दभिल्ल ( गन्धर्वसेन ) विक्रमदित्य ( पंवार ) का पिता माना जाता है इससे परमार मोर्य सिद्ध होते है परन्तु सम्प्रति के पुत्रों में कोई परमार नामक पुत्र का अस्तित्व नहीं मिलता है | दुसरे सम्प्रति jain धरम अनुयायी था और उसका पिता अशोक ऐसा सम्राट था जिसने इस देश में नहीं ,विदेशों तक बोध धर्म फैला दिया था | अतः सम्प्रति के पुत्र या पोत्र का वैदिक धरम के लिए प्रचार के लिए होने वाले ब्रहम यज्ञ में शामिल होना समीचीन नहीं जान पड़ता |  दुसरे यह आलेख बहुत बाद का 14वीं शताब्दी का है जो शायद परमारों की ऐक शाखा मोरी होने से परमारों की उत्पत्ति मोर्यों से होना मान लिया लगता है | अन्य पुष्टि प्रमाणों के सामने यह साक्ष्य विशेष महत्व नहीं रखता | अतः मूलतः परमार चन्द्रवंशी और फिर अग्निवंशी हुए |

प्राचीन इतिवृत -
परमारों का प्राचीन इतिवृत लिखने से पूर्व यह निश्चिन्त करना चाहिए की उनका प्राचीन इतिहास किस समय से प्रारंभ होता है | इतिहास के प्रकंड विद्वान् ओझाजी ने शिलालेखों के आधार पर परमारों का इतिहास घुम्राज के वंशज सिन्धुराज से शुरू किया है | जिसका समय परमार शासक पूर्णपाल के बसतगढ़ ( सिरोही -राजस्थान ) में मिले शिलालेखों की वि. सं. १०९९ के आधार पर पूर्णपाल से ७ पीढ़ी पूर्व के परमार शासक सिन्धुराज का समय ९५९ विक्रमी के लगभग होता है | और इस सिन्धुराज को यदि मुंज का भाई माना जाय तो यह समय १०३१ वि. के बाद का पड़ता है | इससे पूर्व परमार कितने प्राचीन थे ? विचार करते है |
चाटसु ( जयपुर ) के गुहिलों के शिलालेखों में ऐक गुहिल नामक शासक की शादी परमार वल्लभराज की पुत्री रज्जा से हुयी थी | इस हूल का पिता हर्षराज राजा मिहिर भोज प्रतिहार के समकालीन था जिसका समय वि. सं. ८९३ -९३८ था | यह शिलालेख सिद्ध करता है की इस शिलालेख का वल्लभराज ,सिन्धुराज परमार ( मारवाड़ ) का वंशज नहीं था इससे प्राचीन था |राजा यशोवर्मन वि. ७५७-७९७ लगभग कन्नोज का सम्राट था उसके दरबारी वाक्पति परमार के लिए कवी बप्पभट्ट आपने ब्प्पभट्ट चरित में लिखता है की वह क्षत्रियों में महत्वपूर्ण रत्न तथा परमार कुल का है इससे सिद्ध होता हे की कन्नोज में यशोवर्मन के दरबारी वाक्पति परमार चाटसु शिलालेख से प्राचीन है | शिलालेख और तत्कालीन साहित्य के विवरण के पश्चात अब बही व्=भाटों के विवरणों की तरह ध्यान दे |
भाटी क्षत्रियों के बहीभाटों के प्राचीन रिकार्ड के आधार पर इतिहास में टाड ने लिखा हे - भाटी मंगलराव ने शालिवाहनपुर ( वर्तमान में सियाल कोट भाटियों की राजधानी ) जब छूट गयी तो पूरब की तरह बढ़े और नदी के किनारे रहने वाले बराह तथा बूटा परमारों के यहाँ शरण ली | यह किला यदु - भाटी इतिहास्वेताओं के अनुसार सं. ७८७ में बना था वराहपती ( परमार के साथ मूलराज की पुत्री की शादी हुयी | केहर के पुत्र तनु ने वराह जाती को परास्त किया और अपने पुत्र विजय राज को बुंटा जाती की कन्या से विवाह किया | ये परमार हि थे |
देवराज देरावर के शासक को धार के परमारों से भी संघर्ष हुआ |
वराह परमारों के साथ इन भाटियों के सघर्ष का समर्थन राजपूताने के इतिहास के लेखक जगदीस सिंह गहलोत भी करते हे | देवराज का समय प्रतिहार बाऊक के मंडोर शिलालेख ८९४ वि. के अनुसार वि. ८९४ के लगभग पड़ता है | इस शिलालेख में लिखा हे की शिलुक प्रतिहार ने देवराज भट्टीक वल्ल मंडल ( वर्तमान बाड़मेर जैसलमेर क्षेत्र ) के शासक को मार डाला | इस द्रष्टि से देवराज से ६ पढ़ी पूर्व मंगलराव का समय 700 वि. के करीब पड़ता है | इस हिसाब से ७वीं शताब्दी में भी परमारों का राज्य राजस्थान के पश्चमी भाग पर था |
उस समय परमारों की वराह और बुंटा खांप का उल्लेख मिलता है नेणसी ऋ ख्यात बराह राजपूत के कहे छ; पंवारा मिले इसी प्रष्ट पर देवराज के पिता भाटी विजयराज और बराधक संघर्ष का वर्णन है | नेणसी ने आगे लिखा हे की धरणीवराह परमार ने अपने नो भाइयों में अपने राज्य को नो कोट ( किले ) में बाँट दिया | इस कारन मारवाड़ नोकोटी मारवाड़ कहलाती है |
नेणसी ने नोकोट सम्बन्धी ऐक छपय प्रस्तुत किया है -

मंडोर सांबत हुवो ,अजमेर सिधसु |
गढ़ पूंगल गजमल हुवो ,लुद्र्वे भाणसु |
जोंगराज धर धाट हुयो ,हासू पारकर |
अल्ह पल्ह अरबद ,भोजराज जालन्धर ||
नवकोटी किराडू सुजुगत ,थिसर पंवारा हरथापिया |
धरनो वराह घर भाईयां , कोट बाँट जूजू किया ||

अर्थात मंडोर सांवत ,को सांभर ( छपय को ,पूंगल गजमल को ,लुद्र्वा भाण को ,धरधाट ( अमरकोट क्षेत्र ) जोगराज को पारकर ( पाकिस्तान में ) हासू को ,आबू अल्ह ,पुलह को जालन्धर ( जालोर ) भोजराज को और किराडू ( बाड़मेर ) अपने पास रखा |

धरणीवराह नामक शासक शिलालेखीय अधरों पर वि १०१७ -१०५२ के बीच सिद्ध होता है | परन्तु परमारों के नव कोटों पर अधिकार की बात सोचे तो यह धरणीवराह भिन्न नजर आता है | मंडोर पर सातवीं शताब्दी के लगभग हरिश्चंद्र ब्राहमण प्रतिहार के पुत्रों का राज्य बाऊक के मंडोर के शिलालेख ८९४ वि. सं. सिद्ध होता है अतः धरणीवराह के भाई सांवत करज्य इस समय से पूर्व होना चाहिए | इस प्रकार लुद्रवा पर भाटियों का अधिकार 9वि. शताब्दी वि. में हो गया था | इस प्रकार भटिंडा क्षेत्र पर जो वराह पंवार शासन कर रहे थे | मेरी समझ धरणीवराह के हि वंशज थे जो अपने पूर्व पुरुष धरणीवराह के नाम से आगे चलकर वराह पंवार ( परमार ) कहलाने लगे थे | ऐसी स्थति में धरणीवराह का समय ६टी ७वि शताब्दी में परमार पश्चमी राजस्थान पर शासन कर रहे थे | परमारों ने यहाँ का राज्य नाग जाती से लिया होगा जेसे निम्न पद्य में संकेत हे

परमांरा रुधाविया ,नाग गिया पाताल |
हमें बिचारा आसिया किणरी झूले चाल ||

मंडोर की नागाद्रिन्दी ,वहां का नागकुंड ,नागोर (नागउर ) पुष्कर का नाम ,सीकर के आसपास का अन्नत -अन्नतगोचर क्षेत्र आदी नाम नाग्जाती के राजस्थान में शासन करने की और संकेत करते हें | तक्षक नाग के वंशज टाक नागोर जिले में 14वीं शताब्दी तक थे | उनमे से हि जफ़रखां गुजरात का शासक हुआ | यह नागों का राज्य चौथी पांचवी शताब्दी तक था | इसके बाद परमारों का राज्य हुआ | चावड़ा व् डोडिया भी परमारों की साखा मानी जाती है | चावडो की प्राचीनता विक्रम की ७वि चावडो का भीनमाल में राज्य था | उस वंश का व्याघ्रमुख ब्रह्मस्पुट सिद्धांत जिसकी रचना ६८५ वि. में हुयी उसके अनुसार वह वि. ६८५ में शासन कर रहा था इन सब साक्ष्यों से जाना जा सकता हे की राजस्थान के पश्चमी भाग पर परमार ६ठी शताब्दी से पूर्व हि जम गए थे और 700 वि. सं. पूर्व धरणीवराह नाम का कोई प्रसिद्द परमार था जिसने अपना राज्य अपने सहित नो भागो में बाँट दिया था |
इन श्रोतों के बाद जब पुरानो को देखते हे तो भविष्य पुराण के अनुवाद मालवा पर शासन करने वाले शासकों के नाम मिलते हे - विक्रमादित्य ,देवभट्ट ,शालिवाहन ,गालीहोम आदी | विक्रमादित्य परमार माना जाता था | इसका अर्थ हुआ विक्रम संवत के प्रारंभ में परमारों का अस्तित्व था | भविष्य पुराण के अनुसार अशोक के पुत्रों के काल में आबू पर्वत पर हुए ब्रहमयज्ञ में परमार उपस्थित था | इस प्रकार परमारों का अस्तित्व दूसरी शादी ई.पू. तक जाता है |
अब यहाँ परमारों के प्राचीन इतिवृत को संक्षिप्त रूप से अंकित किया जा रहा है | अशोक के पुत्रों के काल २३२ से २१४ ई.पू. आबू पर ब्रहमहोम (यज्ञ ) हुआ | इस यज्ञ में कोई चंद्रवंशी क्षत्रिय शामिल हुए | ऋषियों ने सोमवेद के मन्त्र से उसका यज्ञ नाम प्रमार( परमार ) रखा | इसी परमार के वंशज परमार क्षत्रिय हुए | भविष्य पुराण के अनुसार यह परमार अवन्ती उज्जेन का शासक हुआ | ( अवन्ते प्रमरोभूपश्चतुर्योजन विस्तृताम | अम्बावतो नाम पुरीममध्यास्य सुखितोभवत ||49||  भविष्य पुराण पर्व खंड १ अ. ६  इसके बाद महमद ,देवापी ,देवहूत ,गंधर्वसेन हुए | इस गंधर्वसेन का पुत्र विक्रमदित्य था भविष्य पुराण के अनुसार यह विक्रमादित्य जनमानस में बहुत प्रसिद्द रहा है | इसे जन श्रुतियों में पंवार परमार माना है | प्रथम शताब्दी का सातवाहन शासक हाल अपने ग्रन्थ गाथा सप्तशती में लिखता हे -
संवाहणसुहरतोसीएणदेनतण  तुह करे लक्खम  |
चलनेण   विक्कमाईव्  चरीऊँअणु सिकिखअंतिस्सा ||

भविष्य पुराण १४वि शदी विक्रम प्रबंध कोष आदी ग्रन्थ विक्रमादित्य के अस्तित्व को स्वीकारते हे | संस्कृत साहित्य का इतिहास बलदेव उपाध्याय लिखते हे -
सरम्या नगरीमहान न्रपति: सामंत चक्रंतत |
पाश्रवेततस्य च सावीग्धपरिषद ताश्र्वंद्र बिबानना |
उन्मत: सच राजपूत: निवहस्तेवन्दिन: ताकथा |
सर्वतस्यवशाद्गातस्स्रतिपंथ  कालाय तस्मे नमः ||
उस काल को नमस्कार है जिसने उज्जेनी नगरी ,राजा विक्रमादित्य ,उसका सामंतचक्र और विद्वत परिषद् सबको समेट लिया | यह सब साक्ष्य विक्रमादित्य ने शकों को पराजीत कर भारतीय जनता को बड़ा उपकार किया | मेरुतुंगाचार्य की पद्मावली से मालूम होता हे की गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य ने शकों से उज्जयनी का राज्य लोटा दिया था |विक्रमादित्य का दरबार विद्वानों को दरबार था |विद्वानों की राय में इस समय पुन: कृतयुग का समय आ रहा था | अतः शकों पर विजय की पश्चात् विक्रमादित्य का दरबार पुनः विद्वानों का दरबार था | विद्वानों की राय से कृत संवत का सुभारम्भ किया | फिर यही कृत संवत ( सिद्धम्कृतयोद्ध्रे मोध्वर्षशतोद्ध्र्यथीतयो  २००८५ ( २ चेत्र पूर्णमासी मालव जनपद के नाम से मालव संवत कहलाया |उज्जेन के चारों और का क्षेत्र मालव ( मालवा ) कहलाता था | उसी जनपद के नाम से मालव संवत कहलाया | फिर 9वीं शताब्दी में विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत हो गया | कथा सरित्सागर में विक्रमादित्य के पिता का नाम महेंद्रदित्य लिखा गया है |
विक्रमादित्य के बाद भविष्य पुराण के अनुसार रेवभट्ट ,शालिवाहन ,शालिवर्धन ,सुदीहोम ,इंद्रपाल ,माल्यवान ,संभुदत ,भोमराज ,वत्सराज ,भाजराज ,संभुदत ,विन्दुपाल ,राजपाल ,महिनर,शकहंता,शुहोत्र ,सोमवर्मा ,कानर्व ,भूमिपाल ,रंगपाल ,कल्वसी व् गंगासी मालवा के शासक हुए | इसी प्रकार करीब ५वि ६ठी शताब्दी तक परमारों का मालवा पर शासन करने की बात भविष्य पुराण कहता हे | मालूम होता हे हूणों ने मालवा से परमारों का राज्य समाप्त कर दिया होगा | संभवत परमार यहाँ सामंत रूप थे
पश्चमी राजस्थान आबू ,बाड़मेर ,लोद्रवा ,पुगल  आदी पर भी परमारों का राज्य था और उन्होंने संभतः नागजाती से यह राज्य छीन लिया था | इन परमारों में धरणीवराह नामक प्रसिद्द शासक हुआ जिसने अपने सहित राज्य को नो भागो में बांटकर आपने भाइयों को भी दे दिया था | वी .एस परमार ने विक्रमादित्य से धरणीवराह तक वंशावली इस प्रकार दी हे
विक्रमादित्य के बाद क्रमशः ,विक्रम चरित्र ,राजा कर्ण, अहिकर्ण ,आँसूबोल ,गोयलदेव ,महिपाल ,हरभान.,राजधर ,अभयपाल ,राजा मोरध्वज ,महिकर्ण ,रसुल्पाल,द्वन्दराय ,इति , यदि यह वंशावली ठीक हे तो वंशावली की यह धारा विक्रमादित्य के पुत्र या पोत्रों से अलग हुयी | क्यूँ की यह वंशवली भविष्य पुराण की वंशवली से मेल नहीं खाती हे | नवी शताब्दी में वराह परमारों से देवराज भाटी ने लोद्रवा ले लिया था तथा वि. की सातवीं में ब्राहमण हरियचंद्र के पुत्रों मंडोर का क्षेत्र लिया | सोजत का क्षेत्र हलो ने छीन लिया था तब परमारों का राज्य निर्बल हो गया था | आबू क्षेत्र में परमारों का पुनरुथान vikram की 11वीं शताब्दी में हुआ | पुनरुत्थान के इस काल में आबू पश्चमी राजस्थान के परमारों में सर्वप्रथम सिन्धुराज का नाम मिलता है इस प्रकार मालवा व् पश्चमी राजस्थान के परमारों का प्राचीन राज्य वर्चस्वहीन हो गया |

आप इतिहास  और thakur  status पढ़ने के लिए लिंक पे क्लिक करे।

60 comments:

  1. Replies
    1. नेपावत पँवार भी है भाई साहब, थोड़ा उनका भी इतिहास बताओ सा

      Delete
  2. PARMARO KE POORVAJ SURYAVANSHI THE MY DEAR..

    AUR VISHWAMITRA CHADRAVANSHI NAHI BALKI SURYAVANSHI THE........KYA KYA LIKHTE HO DEAR..........IMPROVE IT.....MATLAB PROVE KARNE KA MATLAB KUCHH KA KUCHH LIKH DO.......

    PARMAR SURYAVANSHI THE...AUR AGNIDEV NE UNHE ASHIRWAD DIYA THA

    ReplyDelete
    Replies
    1. परमार मूलत मौर्य थे और मौर्य सूर्यवंशी क्षत्रिय थे।ये सम्राट अशोक के पौत्र सम्प्रति मौर्य के वंशज थे।

      Delete
    2. Agni vanshi Panwar bhaya

      Delete
  3. rashtakuta means rathore aur they are also suryavanshi the my dear..................such a wrong infor....u r providing

    ReplyDelete
    Replies
    1. अजय जी गौर से पढ़िए इस ब्लॉग को इसमें तर्क दिए गए हे ओर यह भी लिखा हे की कहीं न कहीं अग्निवंस वाले सूर्य वंश य चन्द्र वंश से तालुक रखते थे

      Delete
    2. parmar me suryavanshi aur chandravanshi dono aate hai.. kyunki pehle agnivanshi nahi tha baadme abu par hawan k baad agnivanshi name pada aur bhot saare alag alag rajput parmar ban gaye.. isliye parmar me dono aate hai.

      Delete
    3. Exactly....do you know about Hikan Parmar too?

      Delete
  4. जय माता जी की सा
    परमार वंश का इतिहास बताने पर तहे दिल से आभार
    सम्पूर्ण राजपुताना का इतिहास लिखने पर भी आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
    उन बनावटी इतिहास बनाने वाले(गुर्जर जाट) के मुंह पर जोरदार तमाचा है।
    हुकम proud of you

    ReplyDelete
    Replies
    1. राजपूतों की विदेशी (स्किथियन) उत्पत्ति का सबूत

      टोड के अनुसार राजपूत, सिथियन मूल के हैं। वह सिथियन के पदनाम के तहत शामिल है, जो विदेशी जनजातियों के नामांकित दलदल हैं, जिन्होंने पांचवीं और छठी शताब्दी एडी के दौरान भारत पर छेड़छाड़ की। इस प्रकार सिथियन शब्द हंस और अन्य संबंधित जनजातियों को संदर्भित करता है। स्मिथ राजपूतों की विदेशी उत्पत्ति को साबित करने के लिए निम्नलिखित तर्कों को आगे बढ़ाता है। : -

      कनौज के प्रतिहार वंश गुर्जरा मूल के रूप में साबित हुए हैं

      "अब यह स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया है कि हुनों ने मुख्य रूप से पंजाब और राजपूताना में अपने स्थायी बस्तियों को बनाया। गुर्जरा, जनजातियों के हुन समूह के सबसे महत्वपूर्ण ने कनौज में एक शक्तिशाली राजवंश की स्थापना की। अब यह निश्चित रूप से साबित हुआ है कि भोज और अन्य राजा वंश का गुर्जरा जनजाति के प्रतिहार वंश से संबंधित था। इसलिए राजपूतों के प्रसिद्ध प्रतिहार या परमारा वंश निश्चित रूप से गुर्जरा स्टॉक से निकले थे। तथ्य यह है कि प्रसिद्ध राजपूत समूह में से एक निस्संदेह गुर्जरा स्टॉक का एक मजबूत अनुमान उठाता है कि अन्य कुलों भी गुर्जरास या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं।

      Delete
  5. धन्यवाद | ڌنيواد

    ReplyDelete
  6. Replies
    1. Kumawat rajput पंवारो से निकले है अथवा चौहानों से

      Delete
  7. Aapne ganon ganon aabhar.
    ArbudaMata Ji ri kripa hamesha Aap par bani rahe
    Or mai chahu hu ki parmaro ri khanpe (jaten) ri jankari mil jave.to
    Aapro bado upkar ho jave.

    ReplyDelete
  8. Kya koi bata sakta hai ki Gujarat me parmar abhi kaha par hai..

    ReplyDelete
  9. Kya koi bata sakta hai ki Gujarat me parmar abhi kaha par hai..

    ReplyDelete
    Replies
    1. Gujarat me bahoti jagah par aapko parmar mil shakte hai

      Delete
    2. Gujarat me bahoti jagah par aapko parmar mil shakte hai

      Delete
  10. गुजरात में काफी जगह परमार हे कच्छ भुज में ज्यादातर हे

    ReplyDelete
  11. Surendar Singh G....Parmaro ke Kiaradu Gotra ke bare me kya jankari rakhte he aap ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. किराडू में परमार the इस वजह से हो सके परमार किराडू गोत्र लगाते हो प्रमारो की उत्पति किराडू बाड़मेर से हे

      Delete
  12. Parmar kshtriya ki jai ho parmar suryavansi hain ...Rohit Singh parmar unchdeeh bajar Meja Allahabad.

    ReplyDelete
  13. Parmar kshtriya ki jai ho parmar suryavansi hain ...Rohit Singh parmar unchdeeh bajar Meja Allahabad.

    ReplyDelete
  14. Sir main ye poochna chahata hu ki pawar vansh ki kuldevi kon si hai....

    ReplyDelete
    Replies
    1. Sacchiyay mata ji osian (ओसिया) jodhpur

      Delete
    2. Hume bi betio panwar vans ki kuldevi kon hai

      Delete
  15. Sir kay panwar or parmaar ek hi he

    ReplyDelete
  16. Sir
    Jagdev G. Ki history batao sir

    ReplyDelete
  17. https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=925564854244771&id=100003737968012

    ReplyDelete
  18. Thank you so much sir .... Apne bohot hi detail me bat rakhi he.... Kya aap
    "Hikan Parmar" k bare me ku6 bata sakte he?
    Me CA hu lekin ye sab gyan nahi tha mujhe.....aur ha ham "Prajapati" surname lagate he to kya ye sahi he?

    ReplyDelete
  19. जगनेर के परमार का करता इतिहास हे

    ReplyDelete
  20. बहुत ही खूब,

    ReplyDelete
  21. What is Gotra of Parmars residing in Gujarat..Vashisth, is it different of Parmar of "Muli" and who are residing at Silvassa and other parts of Gujarat..

    prakashchandrasinh@gmail.com

    ReplyDelete
  22. dodiya jo malva me vo parmar hi hote hain

    ReplyDelete
  23. राजपूतों की विदेशी (स्किथियन) उत्पत्ति का सबूत

    टोड के अनुसार राजपूत, सिथियन मूल के हैं। वह सिथियन के पदनाम के तहत शामिल है, जो विदेशी जनजातियों के नामांकित दलदल हैं, जिन्होंने पांचवीं और छठी शताब्दी एडी के दौरान भारत पर छेड़छाड़ की। इस प्रकार सिथियन शब्द हंस और अन्य संबंधित जनजातियों को संदर्भित करता है। स्मिथ राजपूतों की विदेशी उत्पत्ति को साबित करने के लिए निम्नलिखित तर्कों को आगे बढ़ाता है। : -

    कनौज के प्रतिहार वंश गुर्जरा मूल के रूप में साबित हुए हैं

    "अब यह स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया है कि हुनों ने मुख्य रूप से पंजाब और राजपूताना में अपने स्थायी बस्तियों को बनाया। गुर्जरा, जनजातियों के हुन समूह के सबसे महत्वपूर्ण ने कनौज में एक शक्तिशाली राजवंश की स्थापना की। अब यह निश्चित रूप से साबित हुआ है कि भोज और अन्य राजा वंश का गुर्जरा जनजाति के प्रतिहार वंश से संबंधित था। इसलिए राजपूतों के प्रसिद्ध प्रतिहार या परमारा वंश निश्चित रूप से गुर्जरा स्टॉक से निकले थे। तथ्य यह है कि प्रसिद्ध राजपूत समूह में से एक निस्संदेह गुर्जरा स्टॉक का एक मजबूत अनुमान उठाता है कि अन्य कुलों भी गुर्जरास या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं।

    ReplyDelete
  24. गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत

    गुर्जर प्रतिहार राजपूत कबीले के पूर्व पिता हैं
    Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan

    इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज  थे।

    गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।

    विन्सेंट स्मिथ का मानना ​​था कि गुर्जर वंश, जिसने 4 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था।
    स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है।

    डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं।

    डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं।

    नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है।

    जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे।
    Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan

    राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI

    shilalekha se bada koi proof nh 💪
    नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
    राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
    गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है
    )। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है।

    समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि गुर्जर राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवृत्त का महान सम्राट कहा जाता था। गुर्जर संभवतः हुनों और कुषाणों की नई पहचान थीं तो हुनों गुर्जरों हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस कारण से सम्राट मिहिरकुलहुन और सम्राट मिहिरभोज सम्राट अशोक से भी महान थे।

    मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था।
    मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।.................

    इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना ​​है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।

    राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा ​​तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।

    गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य अनेक भागों में विभक्त था। ये भाग सामन्तों द्वारा शासित किये जाते थे। इनमें से मुख्य भागों के नाम थे:

    शाकम्भरी (सांभर) के चाहमान (चौहान)
    दिल्ली के तौमर
    मंडोर के गुर्जर प्रतिहार
    बुन्देलखण्ड के कलचुरि
    मालवा के परमार
    मेदपाट (मेवाड़) के गुहिल
    महोवा-कालिजंर के चन्देल
    सौराष्ट्र के चालुक्य

    ReplyDelete
  25. shilalekha and tamarpatra se bada koi proof nh hai

    ReplyDelete
  26. Sir ji parmar vansh ka samrajya ispast Kyo nahi bataya gya

    ReplyDelete
  27. क्षत्रिय परमार राजपूत .धारगढ उजैणी से नीकले राजा वीर विक्रम साखे राजपूत परमार के कुल के हे,गोत्र वशिष्ठ पाराशर गोत्र कुल देवी मां हरसीध भवानी प्रसंन देवी मां महाकाली थरा मे वीर बैताल की पूजा होती ओर तलवार की धार केल का पूजन होता ,त्रीप्रवर वंश वेद यजुर्वेद कहलाता ,असल गढ आबू गढ अर्बुद गढ वहासे उज्जैण से धार गढ वहासे नीकले गढ पाटण आऐ पाटण में सोलंकी सीद्धराज के राज में काल भैरव आता उसका दुःख दुर कीया हे, जगदेव परमार ने शीश का दांन कीया वहासे नीकलके गढ मुली मे बसे वहासे मुली गढ के परमार का ऐक वंश नीकलके गढ पावागढ बसे ओर मुस्लमान ने पावागढ पर कबजा कीया चैहाण पताई के राज मे उसदीन नर्मदा तट पे आके बसे ओर आदिबासी के घर का पाणी पीया ओर तदवी साखे लगी अगले जमाने मे आदिबासी, तदवी ,वलवी,कठारीया,तेटरीया,धाणका,नाम के आदिबासी के घर का पाणी पीया ओर तदवी परमार साखा लगी, असल में साखा राजपुत परमार कुल उचा से उचा कुल है मुली गढ के परमार राजपूत सखा तदवी परमार
    ( बारोटजी भीखाभाई लक्ष्मणभाई )

    ReplyDelete
  28. क्षत्रिय परमार राजपूत .धारगढ उजैणी से नीकले राजा वीर विक्रम साखे राजपूत परमार के कुल के हे,गोत्र वशिष्ठ पाराशर गोत्र कुल देवी मां हरसीध भवानी प्रसंन देवी मां महाकाली थरा मे वीर बैताल की पूजा होती ओर तलवार की धार केल का पूजन होता ,त्रीप्रवर वंश वेद यजुर्वेद कहलाता ,असल गढ आबू गढ अर्बुद गढ वहासे उज्जैण से धार गढ वहासे नीकले गढ पाटण आऐ पाटण में सोलंकी सीद्धराज के राज में काल भैरव आता उसका दुःख दुर कीया ओर , जगदेव परमार ने मस्तक दांन कीया वहासे नीकलके गढ मुली मे बसे वहासे मुली गढ के परमार का ऐक वंश नीकलके गढ पावागढ बसे ओर मुस्लमान ने पावागढ कबजे करलीया चैहाण पताई राजा के राज मे उसदीन नर्मदा तट पे आके बसे ओर आदिबासी के घर का पाणी पीया ओर तदवी साखे लगी अगले जमाने मे आदिबासी, तदवी ,वलवी,कठारीया,तेटरीया,धाणका,नाम के आदिबासी के घर का पाणी पीया ओर तदवी परमार साखा लगी, असल में साखा राजपुत परमार कुल उचा से उचा कुल है मुली गढ के परमार राजपूत (साखा तदवी परमार)
    ( बारोटजी भीखाभाई लक्ष्मणभाई )

    ReplyDelete
  29. राजा भोज परमार द्वारा लिखित पुस्तक सरस्वती कंठाभरण', पढ़ ले उनकी लिखी बुक चेक कर लेना गूगल पर

    श्रीः ॥ परमारवंश्यो भोजदेवः

    वासिष्ठ: सुकृतोद्भवोऽध्वरशतैरस्त्यग्निकुण्डोङ्गयो भूपालः परमार इत्यधिपतिः सप्ताधिकाञ्चेर्भुवः । अद्याप्यद्भुतहर्षगड्दगिरो गायन्ति यस्योट विश्वामित्रजयोजितस्य भुजयोर्विस्फूर्जितं गुर्जरा:

    हिंदी में अनुवाद
    वशिष्ठ की स्त्री अरुंधति रोने लगी। मुनि उसकी दशा देखकर क्रोधित हो गए और मंत्र का पाठ करने के बाद, उन्होंने आहुति देकर अपने अग्नि कुंड से एक वीर उत्पन्न किया। वह वीर शत्रुओं को नष्ट करके वसिष्ठ की गाय को वापस ले आया। उसका नाम परमार रखा और उसे एक छत्र देकर राजा बनाया। माउंट आबू के गुर्जर, वसिष्ठ के अग्नि कुंड से पैदा हुए और विश्वामित्र को जीतकर, आज भी परमार नाम के राजा की महिमा को याद करते हैं।

    आबू पर्वत पर चार वंश अग्निकुंड से पैदा हुए,प्रतिहार,परमार,चौहान, चालुक्य वंश अग्नि से पैदा हुए और चारो वंश गुर्जर थे परमार भोज राजा ने लिखा है

    9वीं शताब्दी में परमार जगददेव के जैनद शिलालेख में कहा है कि गुर्जरा योद्धाओं की पत्नियों ने अपनी सैन्य जीत के
    परिणामस्वरूप अर्बुडा की गुफाओं में आँसू बहाए।

    इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और तोमर के पूर्वज  थे।

    इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज  थे।

    लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।

    ReplyDelete
  30. Parmar Vansh ki Kuldevi aur Kuldev kon hai ?

    ReplyDelete
  31. राजा भोज परमार द्वारा लिखित पुस्तक सरस्वती कंठाभरण', पढ़ ले उनकी लिखी बुक चेक कर लेना गूगल पर

    श्रीः ॥ परमारवंश्यो भोजदेवः

    वासिष्ठ: सुकृतोद्भवोऽध्वरशतैरस्त्यग्निकुण्डोङ्गयो भूपालः परमार इत्यधिपतिः सप्ताधिकाञ्चेर्भुवः । अद्याप्यद्भुतहर्षगड्दगिरो गायन्ति यस्योट विश्वामित्रजयोजितस्य भुजयोर्विस्फूर्जितं गुर्जरा:

    हिंदी में अनुवाद
    वशिष्ठ की स्त्री अरुंधति रोने लगी। मुनि उसकी दशा देखकर क्रोधित हो गए और मंत्र का पाठ करने के बाद, उन्होंने आहुति देकर अपने अग्नि कुंड से एक वीर उत्पन्न किया। वह वीर शत्रुओं को नष्ट करके वसिष्ठ की गाय को वापस ले आया। उसका नाम परमार रखा और उसे एक छत्र देकर राजा बनाया। माउंट आबू के गुर्जर, वसिष्ठ के अग्नि कुंड से पैदा हुए और विश्वामित्र को जीतकर, आज भी परमार नाम के राजा की महिमा को याद करते हैं।

    आबू पर्वत पर चार वंश अग्निकुंड से पैदा हुए,प्रतिहार,परमार,चौहान, चालुक्य वंश अग्नि से पैदा हुए और चारो वंश गुर्जर थे परमार भोज राजा ने लिखा है

    ReplyDelete
    Replies
    1. अरे मुर्ख गुर्जर शब्द संस्कृत में शत्रुओं का नाश करने वाला होता है

      Delete
  32. राजा भोज परमार द्वारा लिखित पुस्तक सरस्वती कंठाभरण', पढ़ ले उनकी लिखी बुक चेक कर लेना गूगल पर

    श्रीः ॥ परमारवंश्यो भोजदेवः

    वासिष्ठ: सुकृतोद्भवोऽध्वरशतैरस्त्यग्निकुण्डोङ्गयो भूपालः परमार इत्यधिपतिः सप्ताधिकाञ्चेर्भुवः । अद्याप्यद्भुतहर्षगड्दगिरो गायन्ति यस्योट विश्वामित्रजयोजितस्य भुजयोर्विस्फूर्जितं गुर्जरा:

    हिंदी में अनुवाद
    वशिष्ठ की स्त्री अरुंधति रोने लगी। मुनि उसकी दशा देखकर क्रोधित हो गए और मंत्र का पाठ करने के बाद, उन्होंने आहुति देकर अपने अग्नि कुंड से एक वीर उत्पन्न किया। वह वीर शत्रुओं को नष्ट करके वसिष्ठ की गाय को वापस ले आया। उसका नाम परमार रखा और उसे एक छत्र देकर राजा बनाया। माउंट आबू के गुर्जर, वसिष्ठ के अग्नि कुंड से पैदा हुए और विश्वामित्र को जीतकर, आज भी परमार नाम के राजा की महिमा को याद करते हैं।

    आबू पर्वत पर चार वंश अग्निकुंड से पैदा हुए,प्रतिहार,परमार,चौहान, चालुक्य वंश अग्नि से पैदा हुए और चारो वंश गुर्जर थे परमार भोज राजा ने लिखा है

    ReplyDelete
    Replies
    1. Choudhary tko khud ki utpatti ka pta h yhaa gyan diye jaa rha h naam k pichhe Choudhary lga liya iske baare m bta thoda kon the Choudhary khaa se aaye the Google pe search mar kr yhaa screen shot paste kiye jaa rha h.

      Delete
  33. મુળી ના પરમાર એક સાખ,તડવી, મૂળી ના પરમાર મૂળી થી પાવાગઢ વસ્યા ને મુસલમાને પાવાગઢ ભાગ્યો તે દાડે નર્મદા તટે આવી વસ્યા ને આદિવાસી ના ઘરનું પાણી પીધું ને વટલયા તડવી સાખ પડી આગામ જમાના માં આદીવાસી તડવી વળવી કઠારીયા ટેતરિયા ધાનકા નામના આદિવાસી ના ઘરનું પાણી પીધું ને વટલયા માટે તડવી સાખ પડી અસલ સાખે પરમાર કુળ ઊંચામાં ઊંચું કુળ છે રાજા વીર વિક્રમ સાખે રાજપૂત પરમાર ના કુળ ના છીએ (સાખ)→( તડવી પરમાર )મો,8320408714

    ReplyDelete