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Sunday 19 April 2015

श्री राम ,श्री कृष्ण भगवान व् उनके वंशज द्वारा बसाए प्राचीन नगर व् किले

प्राचीन किले व् स्थान जिनका उल्लेख गजनी टू जैसलमेर बुक में आया हे
१.मथुरा -राजा राम के छोटे भाई शत्रुध्न ने इसे बसाई थी , बाद में राजा आयु सोमवंशी की यह राजधानी रही | इसके आसपास के क्षेत्र को सूरसेनी नाम से जाना जाता था | कालान्तर में यह श्री कृष्णा जी यदुवंशी की राजधनी रही |
२. पेशावर -राजा राम के छोटे भाई भरत ने इसे बसाई थी और अपने राजकुमार पुष्कल के नाम से इसे पुश्क्ल्वती नाम दिया | बाद में पेशावर इसका अप्भ्र्संश हो गया ,जो आज भी है | अनेक वर्षों तक यह यदुवंशियो की महत्वपूर्ण राजधानी रही |
3.कन्नोज -यह अति प्राचीन नगर था जो राजा ययाति के राजकुमार अनु सोमवंशी की राजधनी रहा | पूर्व -मध्यकाल में इसकी ऐतिहासिक महता सदेव बनी रही |

४.प्रयाग -यह अति प्राचीन नगर था जो अनेक पीढियो तक सोमवंशी राजाओं की राजधानी रही | राजा ययाति ने अपने छोटे राजकुमार पुरु को इसे राज्य के उतराधिकार में दिया |
5.मुल्तान -यह एक प्राचीन नगर था जिसके विभिन्न कालों में भिन्न-भिन्न नाम रहे -मूलस्थान,कश्यप्पुर,हंसपुर ,भागपुर ,सांभलपुर ,प्रह्दपुर ,आदि | कहते हे की अद्तीय एवं देत्यो के पिता ऋषि कश्यप ने इसे बसाया था ,इसलिए इसे कश्यपपुर कहा गया | श्री कृष्णा के राजकुमार साम्ब ने यहाँ का सुप्रसिद्ध सूर्य मंदिर बनवाया था | जिसे कालान्तर में भट्टीरिका मंदिर. भाटियों का मंदिर नाम से जाना गया |6.द्वारिका -प्राचीन काल में राजा इक्ष्वाकु के राजकुमार आन्वित ने इसकी स्थापना की थी | इसे द्वारवती ,कुशस्थली ,जगतकुंट भी कहते थे | श्री कृष्णा ने यहाँ भव्य नगर बसाकर इसे अपनी राजधानी बनायी | उनके अन्तर्धान के थोड़े समय बाद में यह अरब सागर में समां गयी ,अब उत्खनन में इसके अवसेश प्राप्त हुए है |

7.गजनी -युद्धिष्ठर संवत 308, बैसाख सुदी तीज (आखातीज ),रोहिणी नक्षत ,रविवार (2590 ई.पू) के दिन इस किले का निर्माण प्रारंभ करवाया गया था | श्री कृष्णा से आठवें यदुवंशी शासक गजबाहू ने गुरु गर्गाचार्य से भूमि मांगकर यहाँ नया किला बनवाया | राजा बालबंध भाटी के पिता श्री (सन 227-79ई.) यहाँ के अंतिम यदुवंशी शासक थे बाद में इन्ही से भाटी वंश की नयी साखा चली | राजा बाल्बंध (सन 361-99ई.) यहाँ के प्रथम भाटी शासक हुए ,और गज्जू भाटी (सन 468-77इ.)यहाँ के अंतिम भाटी शासक रहे |
8.लाहोर -यह प्राचीन नगर था जिसे राजा राम के राजकुमार लव ने बसाया था | इसका प्राचीन नाम लोहावर था ,इस नाम से कालांतर में मंगोल और मुगल इसे लाहोर कहने लग गए | यहाँ पर यदुवंशीयों और भाटियों की राजधानी रही |
9.शालिवाहनपुर -राजा शालिवाहन ने वि. संवत 251 ( सन 194 ई.) में लाहोर के पास यह किला बनवाकर नगर बसाया | टांड के अनुसार वि.सं. 72 आठ भादों ,रविवार (सन 016 ई)
के दिन शालिवाहनपुर के किले का निर्माण आरम्भ किया गया था


11 comments:

  1. नेणसी री ख्यात भाग २ में एक ऐतिहासिक टीप्पणी वर्णन हे उसमें कहा है कि गजनी बनी उस समय नतो युधिष्ठर संवत ३०८ थी ओर न ही रोहीणी नक्षत्र और रविवार

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  2. आप भाटियों और यदुवंश के ईतिहास के लिए काफि महेनत कर रहे हैं और आशा है कि आप भी हुकुमतसिंहजी भाटी,रघुवीरसिंहजी भाटी ,हरिसिंहजी भाटी कि तरह एक ऐतिहासिक ग्रंथ देकर पुरे चंद्रवंश का नाम उज्जवल करेंगे....

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  3. जहा त्रुटिया हे सुधारने की कोसिस करूँगा आर्य पुत्र जी आपका सुभ नाम

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  4. ईश्वर.भाटी कच्छ

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  5. भाटीयों का ईतिहास एक सुवर्ण पत्र पर अंकित ॐ कि तरह उज्जवल है! अरे भाटी का तो अर्थ ही "सूर्य समान बलवान योद्धा" है! जिसे संस्कृत में "भट्टार्क " कहाजाता है! मेरी निजी शोध के मुताबिक "भाटी "नामका कोई राजा नहीं था! परंतु यह एक उपाधी थी! जिसे उस ज़माने में "भट्टिक राज" कही जाती थी! यह उपाधी जाह्मश्री देवेन्द्रसेन सामा के चतुर्थ पुत्र भुपतसेन को उनके पिताश्री द्वारा विक्रम संवत ६८० में मृगशीर्ष सुक्ल १ रविवार को "लोहकोट" में राज्याभिषेक कर के उनके पिता जाह्म देवेन्द्रसेन सामा ने उन्हे "पंचनद" अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए "भट्टिक राज" कि उपाधी दी गई! और लोहकोट से थर के पट तक कि जमीन उन्हे जागिर में दि गई! लेकिन वह स्वतंत्र नहीं थे बल्कि अपने पिता के एकछत्र "सामा शाशाह" के अधिन थे! विक्रम संवत ६८३ में ईनके पिता जाह्मश्री देवेन्द्रसेन सामा का देहांत हुआ! तब "दिन उल ईस्लाम" دین ال ایشلام" एक नया नया धर्म था! और उनकि खिलाफत का नाम خليفاحان ال اربيياة راشيدونن خليفاح ال ايسلام ابوبكر بين اوسمانييا ..खलिफाहान अल अरबियाह राशिदुन्न खलिफाह उल ईस्लाम अबुबक्र ईब्न उस्समानिया के सुबा امين انوم داولاح امين ال ميللت اومر بين ال ختتاب अमीर अनुम दौलाह अमीर उल मील्लत उमर ईब्न अल खत्ताब ने सामाओं कि राजधानी काबुल كآبل पर आक्रमण किया .जाह्म देवेन्द्रसेन के चारों पुत्र असपत उर्फ उग्रसेन ,गजपत,नरपत,और भुपत वहां से सिंध होते हुएं लासबेलो لاسبےلو आयें और वहां चारणों कि वांढ में शरण ली. वो चारण ईनको पहचान गएं और उनकि उम्र को ध्यान में रखते हुए! और पारस और गांधार के राजा के वंश कि रक्षा के लिए उन्होने अपने पुत्रो कि तरह उन चारों किशोंरो को रखलिया.. जब अरब के सुबे उमर ईब्न अल खत्ताब ने राजवंश के बारेमें जाना तो पता हुआ कि. रानियोने जौहर कर लिया ओर कुछ चुनंदे सेवको को लेकर चारों जामाउत यहां से भाग गएं हैं! बहुत ढुंढने पर उनका पता लासबेले के पहाडी विस्तार में चारणों के पास होना मिला! तुरंत उसकि सेना ने पुरे पहाड को घेर लिया . और सुबा जानता थाकि चारण जाति दैवी शक्ति वाली होती है ! और उस सुबे ने चारणो से समझोता किया कि कोई भी एक पुत्र को हमें देदो हम वादा करतें हें कि उसे अपने पिता कि सारि संपति व राज्य लोटा देंगे ओर दिन उल ईस्लाम के लिये मांग लिया! चारणों ने ईस समझोते के तहत बडेपुत्र असपतसेन को उसकि मर्जि से सोंपा और सभी लोग काबुल गएं और असपत को ईस्लाम कबुल करवाके काबुल कि गद्दी पर बिठाके सुबा उमर अल खत्ताब राशिदुन खिलाफत अरब में लौट जाता है! और असपत अपने भाईयों को उनकि संपति देकर काबुल से अपनी राजधानी का नाम सामरकंद سامركند (अब: समरकंद ) शहर बनाकर वहां गया. गजपत,नरपत और भुपत ने गांधार देश में एक पहाडी किला विक्रम संवत ७०८ वैशाख सुद ३ शनिवार को तोरण विधी कर तीनों मेंसे बडे भाई गजपत के नाम पर گزنا गज़ना (अब: गज़नी) रखा ! "भट्टिक राज" भुपतसेन वहां से अपनी राजधानी लोहकोट आ गएं! उन का विवाह अवल वाडा सिंध के सुमरा (परमारों कि खांप) पाग़ारा जाह्म उनड़जी कि पुत्री फुलवंती से हुंए .. भट्टिक राज कि उपाधी से उनके वंशज भट्टीक कहलाने में गर्व अनुभव करतें थे.. बादमें भट्टिक से "क" निकल गया. और ये उनकि एक शाखा बन गई .जो सामा राजपूत (सामा का अप्रभंश समा हो गया) यानि कृष्णनंदन सांब (साम) के वंशज हैं! बाद में राजस्थान के भाटों ने भाटियों कि भुपत से आगे कि काल्पनिक वंशावली बनाई. जिसमें कबीरसेन ,अलीभान जेसे उर्दु मीस्रीत नाम बनायें ..ईतने से पेट नहीं भरा तो ये लिख दिया कि ५०० साल द्वारिका में राज किया मेरे ख्याल से ईससे सफेद झुठ और कोई शायद हि होगा.. पुरी दुनिया जानति हे कि श्री कृष्ण ने द्वारिका बसाई ओर उनके स्वधाम जाने के बाद द्वारिका जलमग्न हो गई.. श्री कृष्ण कि आयु मात्र १२६ साल थी तो द्वारिका में ५०० साल राज किसने किया. एसे ही लिख कर ईतिहास को भ्रमित किया .. अगर भट्टीक राज कि उपाधी का वर्णन करें तो मेरी शोध के अनुसार रावल देवराज के समय तक यह उपाधी भाटी वंशपरंपरा से ग्रहण करते आ रहेथे.. जो कि मंडोर के प्रतिहार बाउक के वि.सं.८९४ के शिलालेख में भट्टिक शब्द का उपयोग किया गया है. "भट्टिक देवराजम् यो वल्ल मण्डल पालकम्" के रुप में प्रमाणिक है! अगर भाटी अथवा भट्टी नाम होता तो दुसरे क्षत्रियों में भी यह नाम अवश्य प्रचलित होता! भाटी सामा शाखा के यादव हैं उसमें कोई संसय नही लगता! सिकन्दर के समय में भी सिंध में सामैनगर और सामा नामक क्षत्रिय मौजुद थे ! जिसका वर्णन उसके ईतिहास कारो ने किया है!

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    1. आर्य साहब कुछ लोग इन्हे प्रद्युम्न जी के वंशज बोल रहे हैं

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  6. भाटीयों का ईतिहास एक सुवर्ण पत्र पर अंकित ॐ कि तरह उज्जवल है! अरे भाटी का तो अर्थ ही "सूर्य समान बलवान योद्धा" है! जिसे संस्कृत में "भट्टार्क " कहाजाता है! मेरी निजी शोध के मुताबिक "भाटी "नामका कोई राजा नहीं था! परंतु यह एक उपाधी थी! जिसे उस ज़माने में "भट्टिक राज" कही जाती थी! यह उपाधी जाह्मश्री देवेन्द्रसेन सामा के चतुर्थ पुत्र भुपतसेन को उनके पिताश्री द्वारा विक्रम संवत ६८० में मृगशीर्ष सुक्ल १ रविवार को "लोहकोट" में राज्याभिषेक कर के उनके पिता जाह्म देवेन्द्रसेन सामा ने उन्हे "पंचनद" अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए "भट्टिक राज" कि उपाधी दी गई! और लोहकोट से थर के पट तक कि जमीन उन्हे जागिर में दि गई! लेकिन वह स्वतंत्र नहीं थे बल्कि अपने पिता के एकछत्र "सामा शाशाह" के अधिन थे! विक्रम संवत ६८३ में ईनके पिता जाह्मश्री देवेन्द्रसेन सामा का देहांत हुआ! तब "दिन उल ईस्लाम" دین ال ایشلام" एक नया नया धर्म था! और उनकि खिलाफत का नाम خليفاحان ال اربيياة راشيدونن خليفاح ال ايسلام ابوبكر بين اوسمانييا ..खलिफाहान अल अरबियाह राशिदुन्न खलिफाह उल ईस्लाम अबुबक्र ईब्न उस्समानिया के सुबा امين انوم داولاح امين ال ميللت اومر بين ال ختتاب अमीर अनुम दौलाह अमीर उल मील्लत उमर ईब्न अल खत्ताब ने सामाओं कि राजधानी काबुल كآبل पर आक्रमण किया .जाह्म देवेन्द्रसेन के चारों पुत्र असपत उर्फ उग्रसेन ,गजपत,नरपत,और भुपत वहां से सिंध होते हुएं लासबेलो لاسبےلو आयें और वहां चारणों कि वांढ में शरण ली. वो चारण ईनको पहचान गएं और उनकि उम्र को ध्यान में रखते हुए! और पारस और गांधार के राजा के वंश कि रक्षा के लिए उन्होने अपने पुत्रो कि तरह उन चारों किशोंरो को रखलिया.. जब अरब के सुबे उमर ईब्न अल खत्ताब ने राजवंश के बारेमें जाना तो पता हुआ कि. रानियोने जौहर कर लिया ओर कुछ चुनंदे सेवको को लेकर चारों जामाउत यहां से भाग गएं हैं! बहुत ढुंढने पर उनका पता लासबेले के पहाडी विस्तार में चारणों के पास होना मिला! तुरंत उसकि सेना ने पुरे पहाड को घेर लिया . और सुबा जानता थाकि चारण जाति दैवी शक्ति वाली होती है ! और उस सुबे ने चारणो से समझोता किया कि कोई भी एक पुत्र को हमें देदो हम वादा करतें हें कि उसे अपने पिता कि सारि संपति व राज्य लोटा देंगे ओर दिन उल ईस्लाम के लिये मांग लिया! चारणों ने ईस समझोते के तहत बडेपुत्र असपतसेन को उसकि मर्जि से सोंपा और सभी लोग काबुल गएं और असपत को ईस्लाम कबुल करवाके काबुल कि गद्दी पर बिठाके सुबा उमर अल खत्ताब राशिदुन खिलाफत अरब में लौट जाता है! और असपत अपने भाईयों को उनकि संपति देकर काबुल से अपनी राजधानी का नाम सामरकंद سامركند (अब: समरकंद ) शहर बनाकर वहां गया. गजपत,नरपत और भुपत ने गांधार देश में एक पहाडी किला विक्रम संवत ७०८ वैशाख सुद ३ शनिवार को तोरण विधी कर तीनों मेंसे बडे भाई गजपत के नाम पर گزنا गज़ना (अब: गज़नी) रखा ! "भट्टिक राज" भुपतसेन वहां से अपनी राजधानी लोहकोट आ गएं! उन का विवाह अवल वाडा सिंध के सुमरा (परमारों कि खांप) पाग़ारा जाह्म उनड़जी कि पुत्री फुलवंती से हुंए .. भट्टिक राज कि उपाधी से उनके वंशज भट्टीक कहलाने में गर्व अनुभव करतें थे.. बादमें भट्टिक से "क" निकल गया. और ये उनकि एक शाखा बन गई .जो सामा राजपूत (सामा का अप्रभंश समा हो गया) यानि कृष्णनंदन सांब (साम) के वंशज हैं! बाद में राजस्थान के भाटों ने भाटियों कि भुपत से आगे कि काल्पनिक वंशावली बनाई. जिसमें कबीरसेन ,अलीभान जेसे उर्दु मीस्रीत नाम बनायें ..ईतने से पेट नहीं भरा तो ये लिख दिया कि ५०० साल द्वारिका में राज किया मेरे ख्याल से ईससे सफेद झुठ और कोई शायद हि होगा.. पुरी दुनिया जानति हे कि श्री कृष्ण ने द्वारिका बसाई ओर उनके स्वधाम जाने के बाद द्वारिका जलमग्न हो गई.. श्री कृष्ण कि आयु मात्र १२६ साल थी तो द्वारिका में ५०० साल राज किसने किया. एसे ही लिख कर ईतिहास को भ्रमित किया .. अगर भट्टीक राज कि उपाधी का वर्णन करें तो मेरी शोध के अनुसार रावल देवराज के समय तक यह उपाधी भाटी वंशपरंपरा से ग्रहण करते आ रहेथे.. जो कि मंडोर के प्रतिहार बाउक के वि.सं.८९४ के शिलालेख में भट्टिक शब्द का उपयोग किया गया है. "भट्टिक देवराजम् यो वल्ल मण्डल पालकम्" के रुप में प्रमाणिक है! अगर भाटी अथवा भट्टी नाम होता तो दुसरे क्षत्रियों में भी यह नाम अवश्य प्रचलित होता! भाटी सामा शाखा के यादव हैं उसमें कोई संसय नही लगता! सिकन्दर के समय में भी सिंध में सामैनगर और सामा नामक क्षत्रिय मौजुद थे ! जिसका वर्णन उसके ईतिहास कारो ने किया है!

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  7. उपर लिखित लेख किसी पुस्तक से नहीं है ! ये मेरी खुद के शंशोधनो के आधार पर है! ईस लिए ईसमें कहीं दोषपुर्ण वाक्य या वस्तु लगे उसका जिम्मेदार में हुं! और ईस विषय में आप मुझे अपनी टीप्पणी द्वारा बतानेकि कृपा करेंगे ! ईश्वर.भाटी "सदस्य कच्छ ईतिहास परिषद" जाम साहेब टप्पर

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    1. Jam is a muslim designation.most of jadeja and others were muslim. before15century.How they can be Sons of krishna.saama dynasty was founded in 1334 by Muslim jam unar.Then how this dynasty can be. hindu.perhaps all the bhati. And jadeja were muslim not yadav.sons of cannot be so coward that they become muslim.Apart from it. Bhati kings has given his daughter to muslims.it is very bad stigma on you.so claim to be yadav.Real yaduvanshi are kings of rewari the Sons of vajranabh.They never list their dignity.apart from it bhati and jadeja are still follow muslim customs.Their rituals and customs are near to muslim not. Yaduvanshi's.wheareas Raos of rewari strictly follow vedic and. Bhagwat traditions.so donor try to be yadavas.

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  8. पोराणिक इतिहास तो यही कहता हे भाटी महारावल के पीछे भाटी कहलाये और नेणसी बगेरा सब कहते हे की भाटी के पीछे ही भाटी कहलाये अब आपको काल्पनिक लगे तो उस समय का कोई इन्शान जीवित बचा नही हे जो अपने को सत्य तथ्य बताये सा

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