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Wednesday 3 July 2013

कांधल (कांधलोत राठोड़ और बनिरोत राठोड़ की खापें और ठिकाने

रायसलोत मेड़तिया :- दूदाजी जोधपुर के भाई कांधल के वंशज कांधल (कान्ध्लोत ) राठोड़ कहलाते है | कांधल अपने समय का वीर योद्धा था | पिता रणमल के चितोड़ में मारे जाने पर राठोड़ों को विपतियों का सामना करना पड़ा | उन विपतियों के दिनों में कांधल ने अपने भाई जोधपुर का साथ देकर राठोड़ राज्य की पुनः स्थापना की | वि.सं.1522 के दशहरा उत्सव मनाने के अवसर पर कांधल आपने भतीजे बीका को पकड़े टहल रहे थे | तो जोधा ने व्यंग में कहा "मालूम होता है कांधल भतीजे को कोई नया राज्य दिलाएंगे |"" यह व्यंग कान्धल जी को लग गया और बीका को लेकर जोधपुर से रवाना हो गए तथा चाडासर आदी स्थानों को जीतकर जाटों के जनपदों पर अधिकार कर बीकानेर नवीन राज्य की स्थापना कर डाली | फतहपुर के नवाब के सेनापति बहुगुणा को मारकर उसके कुछ प्रदेश अधिकार कर बीकानेर राज्य का विस्तार किया | आपने दुसरे भतीजे बीदा को छापर द्रोणपुर को जीतने में पूरी मदद की और शाही सेनापति सारंग खां को युद्ध भूमि में भगा दिया | सी समय उनकी अवस्था 70 वर्ष थी फिर भी उनमे अदम्य साहस था | सारंग खां ने बड़ी सेना लेकर फिर चढ़ाई की | कांधल मुकाबले पर आये | वीरता के साथ सारंग खां का मुकाबला हुआ | घोड़े का तंग टूट जाने के कारन उन्हें नीचे उतरना पड़ा और ऐसी स्थति में सारंग खां ने परबल आक्रमण किया | कांधल वीरता से लड़ते हुए युद्ध भूमि में काम आये |
कांधल जी के बड़े पुत्र वाघ थे | इनके तीन पुत्र बणीर ,नारायणदास ( ठी, धमोरा ) व् रायमल थे | रायमल के वंशज रायमलोत कांधल कहलाते है | इनके वंशज रोहतक के पास डमाणा गाँव में बसते है |

१. बनीरोत :-बाघ के पुत्र बणीर से बनीरोत कांधल राठोड़ों की उत्पति हुयी | लूणकरण जी द्वारा ददरेवा पर अधिकार के समय बणीर उनकी सेना में शामिल थे | जैसलमेर पर जब लूणकरण ने चढ़ाई की तब भी बणीर साथ में था | जैतसिंह बीकानेर के समय वि.सं.1791 में कामरां ने जब बीकानेर पर चढ़ाई की तब use हटाने में बणीर का पूरा सहयोग था | जयमल मेड़तिया की राव कल्याणमल ने मालदेव के विरुद्ध सहायता की तब भी बणीर बीकानेर की सेना के साथ थे |
बणीर के दस पुत्र थे | मेघराज ,मैकरण ,मेद्सी ,(सीरियासर शेखावटी) अचलदास ( घांघू ) मालदेव (चुरू ) महेसदाश ने चुरू पर अधिकार कर लिया इनके बाद चुरू की गद्धी पर क्रमश सांवलदास ,बलभद्र ,भीमसिंह व् कुशलसिंह हुए | कुशलसिंह बीकानेर नरेश करणसिंह व् अनूपसिंह के साथ दक्षिण में रहकर कई युद्धों में भाग लिया | करणसिंह की म्रत्यु ओरंगाबाद में हुयी ,तब बीकानेर के सारे सरदार उन्हें छोड़कर बीकानेर चले आये | पर कुशलसिंह ने अपना कर्तव्य निभाया और सारे मरत करम करवाए | इन्होने हि शहर की सुरक्षा के लिए चुरू में किला बनवाया | सुरक्षा के कारण फतहपुर में बहुत से महाजन यहाँ आकर बीएस गए | इनके बाद इन्द्रसिंह चुरू की गद्धी पर बैठे | शेखावतों द्वारा फतेहपुर की विजय के समय इन्द्रसिंह सेना सहित नवाब की सहायता को गए थे |
इन्द्रसिंह के बाद संग्रामसिंह चुरू की गद्धी पर बैठे | जोरावरसिंह बीकानेर इनसे रुष्ट होकर चुरू का पट्टा जुझारसिंह के नाम कर दिया तब वे बीकानेर बीकानेर राज्य में विद्रोह हो गए | उन्होंने बीकानेर पर जोधपुर अ आक्रमण होने के समय जोधपुर का साथ दिया | संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर जुझारसिंह से चुरू छीन लिया | बीकानेर नरेश जोरावरसिंह ने सात्यूं में इस स्वाभिमानी सरदार को वि.सं.1798 में छल से मरवा डाला | जोरावरसिंह ने चुरू पर अधिकार कर लिया | इनके बाद धीरतसिंह ,हरिसिंह ,व् शिवराजसिंह हुए |
शिवाजिसिंह चुरू के ऐक स्वाभिमानी व् वीर योद्धा हुए | उन्होंने महाराजा सूरतसिंह बीकानेर की अधीनता स्वीकार नहीं की | अतः महाराजा ने ऐक सेना को चुरू पर आक्रमण करने भेज दिया परन्तु use विफल होना पड़ा | जोधपुर द्वारा बीकानेर पर आक्रमण की सुचना पाकर सूरतसिंह ने शिवाजिसिंह को सहतायार्थ बुलाया परन्तु शिव्जिसिंह सहायता की बजाय बीकानेर क्षेत्र को लुटने लगे थे | सूरतसिंह ने अंत में 1870 वि.में चुरू पर आक्रमण कर दिया | महाराजा को सफलता न मिली और वहां से रिणी चले गए | कुछ समय बाद सूरतसिंह ने फिर चुरू पर आक्रमण किया | सिवाजिसिंह ने कड़ा मुकाबला किया | किले में जब गोला बारूद खत्म हो गयी तो शिव्जिसिंह ने चांदी के गोले ढलवाये और युद्ध जारी रखा | इस समय 1871 वि.कार्तिक सुदी में शिवजी सिंह का किले में देहांत हो गया तब कहीं बीकानेर का चुरू पर अधिकार हुआ | इनके बाद इनके पुत्र प्रथ्विसिंह ने चुरू को वापिस लेने की कोशिस बहुत की और अंत में बहुत से लोगो की मदद से चुरू पर अधिकार कर लिया | सूरतसिंह को बहुत चिंता हुयी | इन्होने और कोई उपाय न देखकर अंग्रेजों से संधि कर ली और अंग्रेज सेनाधिकारी बिर्गेडियर अर्नाल्ड ने चुरू को विजय किया |
सूरतसिंह के मरने के बाद फिर राजा रतनसिंह ने प्रथ्विसिंह से मेल कर लिया और कुचोर की जागीरी दी | कुचोर गद्धी पर प्रथ्विसिंह के बाद भैरूसिंह ,बालसिंह ,प्रतापसिंह व् कान्हसिंह रहे |

बनीरोत राठोड़ों की खापें :-
१.मेघराजोत बनीरोत :-बणीर के बड़े पुत्र मेघराज के वंशज मेघराजोत बनिरोत कहलाते है | इनका ठिकाना ऊंटवालिया था |
२.मैकरनोत बनीरोत :-बणीर के पुत्र  मैकरण के वंशज है | इनके वंशज कानासर में बसते है |
३.अचलदासोत बनीरोत :-बणीर के पुत्र अचलदास के वंशज अचल्दासोत बनिरोत कहलाते है |इनकी जागीरी में घांघू गाँव था |
४.सूरसीहोत बनिरोत :-बणीर के पुत्र मालदेव के पुत्र सांवलदास के पुत्र सूरसिंह के वंशज सुरसिहोत बनिरोत है |वे चलकोई गाँव में निवास करते है |
५.जयमोल बनीरोत :-सांवलदास चुरू के पुत्र जयमल के वंशज | इन्द्रपुरा में निवास करते है |

६.प्रतापसिंह बनिरोत :-चुरू के ठाकुर सांवलदास के पुत्र बलभद्र के पोत्र तथा भीमसिंह के पुत्र प्रतापसिंह थे | प्रतापसिंह के वंशज प्रतापसिहोत बनीरोत है | लोसणा ,तोगावास आदी इनके जागीर में थे |
७.भोजराजोत बनीरोत :-प्रतापसिंह के भाई भोजराज के वंशज भोजराजोत बनीरोत कहलाते है | जसरासर ,दूधवा मीठा इनके इलाके है |
८.चत्रसालोत बनीरोत :- भोजराज के भाई कुशलसिंह चुरू के पुत्र चत्रसाल के वंशज है देपालसर इनका ठिकाना 9.नथमलोत बनीरोत :-चत्रसाल के भाई इन्द्रसिंह चुरू के पुत्र नाथुसिंह के वंशज है | इनकी जागीरी सोमासी थी |
१०.धीरसिहोत बनीरोत :-चुरू के इन्द्रसिंह के पुत्र संग्रामसिंह के पुत्र धीरसिंह के वंशज | संग्रामसिंह के बाद धीरसिंह चुरू के ठाकुर  रहे | सात्यू(इकलड़ी ताजीम ) झारिया (दोलड़ी ताजीम )पीथीसर आदी इनके ठिकाने थे |
11.हरिसिहोत बनीरोत :- धीरसिंह के भाई हरिसिंह भी चुरू के ठाकुर थे | इनके वंशज हरिसिहोत कहलाये | इनका ऐक ठिकाना जोधपुर रियासत में हरसोलाव तथा बीकानेर रियासत में बुचावास ,धोधलिया ,थिरियासर ,घांघू ,हरपालसर आदी ठिकाने थे | जयपुर राज्य में हिंगोलिया भी इनका ठिकाना था |

२.रावतोत कांधल:- रावत कन्ध्ल जी के दुसरे पुत्र का नाम राजसिंह था | कान्धल जी म्रत्यु उपरांत रावत की उनके बड़े पुत्र बाघसिंह की शीघ्र म्रत्यु हो गयी तथा पुत्र बणीर अल्पायु था | इस कारन राजसिंह की पिता की पर्ववत पदवी मिली तथा राजासर का ठिकाना मिला | राजासर बीकानेर के चार रियासत ठिकानों में से ऐक था | यही राजासर बाद में रावतसर कहा जाने लगा | रावत पदवी के कारन राजसिंह के वंशज रावतोत कहलाये | कमरा द्वारा बीकानेर पर आक्रमण करने के समय राजसिंह के पुत्र किशनदास ने वीरता दिखाई | इनके पुत्र उदयसिंह हुए | किशनसिंह को जैतपुरा ठिकाना मिला | अकबर के समय गुजरात पर आक्रमण करने के समय राघवदास पुत्र उदयसिंह ने वीरता दिखाई | तथा उनके पुत्र जगतसिंह ने वीरगति पायी | राघवदास के बाद क्रमश रामसिंह ,लखधीरसिंह ,चतरसिंह ,आनंदसिंह ,जयसिंह ,हिम्मतसिंह ,विजयसिंह ,भोमसिंह ,नाहरसिंह ,जोरावरसिंह ,रंजीतसिंह ,हुकुमसिंह ,मानसिंह ,तथा तेजसिंह रावतसर गद्धी पर रहे | तेजसिंह की राणी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत राजस्थान की जानी मानी विदुषी है | ये राजस्थान विधानसभा की सदस्य भी रही है |
रावतसर के किशनसिंह को कल्याणमल (बीकानेर ) ने जैतपुर (दोलड़ी ताजीम ) का ठिकाना दिया | गजसिंह के समय उनके बड़े भाई अमरसिंह जोधपुर की सेना को बीकानेर पर चढ़ा लाये | उस समय जैतपुर के स्वामी स्वरूपसिंह ने बरछे के वार से जोधपुर सेना के सेना नायक रतनचन्द्र भंडारी को मार डाला | यहाँ के स्वामी सरदारसिंह ने सूरतगढ़ बसाने के समय भट्टियों का दमन किया तथा सुरक्षा के लिए फतहगढ़ का निर्माण करवाया | इन ठिकानो के अलावा ?( इकोलड़ी ताजीम )महेल(सादी ताजीम ) कालासर आदी रावतोंतो के ठिकाने थे |रावतसर के राघवदास के वंशज राघव्दासोत भी कहलाये | इनके बीकानेर रियासत में बिसरासर (इकोलड़ी ताजीम ) व् घांघूसर ( सादी ताजीम ) के ठिकाने थे |

३.साईंदासोत कांधल :- कांधलजी के पुत्र अरड़कमल को साहवा का ठिकाना मिला | अरड़कमल ने भटनेर जीता | कमरा ने जब भटनेर पर आक्रमण किया उस समय भटनेर का किला अरड़कमल के पुत्र खेतसी के अधिकार में था | कामरा ने खेतसी को अधीनता स्वीकार ने कहलवाया परन्तु खेतसी ने अधीनता स्वीकार न की और मुगलों की युद्ध के लिए ललकारा | युद्ध शुरू हुआ | मुगल जब किले पर चढ़ने का प्रयतन करने लगे तो वीर राजपूत की तरह खेतसी नंगी तलवार लिए किले बहार आकर शत्रु दल पर टूट पड़ा और राजपूती शोर्य के साथ वीरगति को प्राप्त हुआ | इसके बाद कामरा बीकानेर पर आक्रमण करने बढ़ा | बीकानेर के साथ युद्ध में खेतसी के पुत्र साईंदास कामरा के विरुद्ध लड़े इसी साईंदास के वंशज साईदासोत कान्धल कहलाते है \ साईदासों के ७ पुत्रों में तीन पुत्रों के हि संतान हुयी पहले जयमल ठिकाना साहवा दुसरे कानसिंह ठिकाना गुणा तीसरे खंगारसिंह ठिकाना सिकरोड़ी |
साईंदास के वंशज क्रमश जयमल ,आसकरण ,हरिसिंह ,दौलतसिंह ,व् लालसिंह को जोरावरसिंह ने बीकानेर ने भादरा की जागीरी दी | लालसिंह अपने समय के स्वाभिमानी तथा वीर राजपूत थे | बीकानेर नरेश के वे विद्रोह हो गए थे | बीकानेर के लिए सिरदर्द बन गए तब जोरावरसिंह ने जयपुर की सहायता ली तो शार्दुलसिंह शेखावत ने लाल सिंह को पकड़कर नाहरगढ़ में रखा | सवाई जयसिंह की म्रत्यु के बाद उन्हें जोधपुर राजा ने छुड़ाया | बाद में बड़ी मुश्किल से बीकानेर राजा गजसिंह ने उन्हें अपराध क्षमा कर भादरा ठिकाना छीन लिया | महाराज सरदारसिंह ने उनके वंशज बाघसिंह को माणकरासर की जागीर दी |
लालसिंह के वंशज लालसीहोत कन्ध्ल भी कहलाते है | उनके वंशज कांधलान ,झाडसर ,झांझणी आदी इनके गाँवो के ठिकाने है |
लालसिहोत के अतिरिक्त साईंदासोतो के वंशज सांवलसर ,सिकरोड़ी ,साहवा ,तारानगर ,रेडी ,साहरण आदी इनके गाँवो के ठिकाने है | कांधल के पुत्र अरड़कमल के वंशजों में मालवा जिला साजापुर में गुणन्दी तथा तन्नोड़ीया ठिकाने थे |कन्ध्ल के पुत्र पूरनमल के वंशज ये बिल्लू चुरू में है |
५.परवतोत :-कांधल के पुत्र परवत के वंशज | ऐक कोटड़ी बिलयु में बताई जाती है |

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