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Friday 20 November 2015

शहीद जदुनाथ सिंह मरणोपरांत परमवीर चक्र

मरणोपरांत जादूनाथ सिंह जी को उनके शहादत दिवस पर शत शत नमन


नाइक जादू नाथ सिंह भारतीय आर्मी में सिपाही थे और भारत - पाकिस्तान युद्ध 1947 में वे अविरल साहस के साथ जम्मू और कश्मीर में लड़े और वीर गति को प्राप्त हुए मरणोंप्रांत उन्हें परम वीर चक्र से शोभित किया गया।

1947 की सर्दियों में जम्मू और कश्मीर में युद्ध के दौरान, पाकिस्तानी सैनिकों ने 24 दिसम्बर को झंगर पर कब्ज़ा कर लिया।  झंगर पर काबू पा लेने के कारण नौशहरा सेक्टर में पाकिस्तानी सेना विजयी स्तिथि में आ गई थी। दुश्मनों की मीरपुर और पूँछ में संचार व्यवस्था भी अच्छी थी। अब पाकिस्तानी दुश्मन पूरी तैयारी के साथ नौशहरा पर हमला करने को तैयार थे।

भारतीय आर्मी यह जानती थी इसलिए उन्होंने जनवरी 1948 में कोट गाँव पर कब्ज़ा कर लिया ताकि दुश्मन आस-पास के इलाके में इकठ्ठे ना हो सके और हमला ना कर सके।

इस सब के लिए ब्रिगेडियर उस्मान (50 पारा ब्रिगेड) ने व्यापक व्यवस्था कर रखी थी साथ ही मजबूत pickets भी बनवा दिए थे। इन्ही pickets में से एक था नौशहरा के उत्तर में तेन धार में।

पहले से ही अनुमान था की दुश्मन हमला करेगा और दुश्मन ने हमला किया 6 फरवरी को सुबह 6:40 पर। दुश्मनों ने तेन धार में ओपन फायरिंग शुरू कर दी। इसके साथ ही पूरा का पूरा तेन धार मशीन गन के शोर, मोर्टार फायर की आवाज़ से घूंज उठा। दुश्मनों ने अँधेरे का फायदा उठाते हुए भारतीय pickets तक पहुच हए।

भोर की पहली रोशनी में देखा की चारो ओर हजारो की तादाद में भारतीय सैनिक हताहत हालात में ज़मीन पर
रेंग रहे थे।

6 फरवरी की उस भयानक सुबह के समय नाइक जादू नाथ सिंह तेन धार में picket no. 2 में थे। उनको मिलकर केवल 9 सैनिक थे उस पोस्ट पर।

दुश्मनों ने उस पोस्ट पर कब्ज़ा करने के लिए सफल हमला किया था।  इस नाजुक हालत में नाइक जादू नाथ सिंह ने महान वीरता और शानदार नेतृत्व का प्रदर्शन किया। जब जादू नाथ सिंह के 4 साथी बुरी तरह घायल हो गये तब भी उन्होंने बाकि बचे हुए साथियो के साथ मिल कर अगले हमले का सामना किया। पोस्ट में अब सैनिकों की संख्या काफ़ी कम हो चुकी थी, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पोस्ट से पीछे नहीं हटे।

जब पोस्ट के सभी सैनिक (नाइक जादू नाथ सिंह समेत) बुरी तरह घायल हो गये, इनमे एक ब्रेन गन चलाने वाला सैनिक भी था (घायल ब्रेन गन चलाने वाला सैनिक, ब्रेन गन चलाने के हालत में नहीं था) तब जादू नाथ सिंह ने ब्रेन गन खुद के हाथों में ली।  तब तक दुश्मन आगे बढ कर पोस्ट की दिवार तक आ चुके थे।

नाइक जादू नाथ सिंह ने स्वयं की चिंता किये बिना, दुश्मनों के सामने आ गये और ब्रेन गन से फायरिंग करने लगे साथ ही अपने साथियो को भी जोश दिलाते गये।

नाइक जादू नाथ सिंह के इस साहसिक कदम के कारण जो निश्चित हार थी उसे जीत में बदल दिया। उन्होंने दूसरी बार पोस्ट को बचाया था।  

अब तक जादू नाथ सिंह को छोड़ कर बाकि 8 सैनिक वीर गति को प्राप्त हो चुके थे।

दुश्मनों ने तीसरा और आखरी हमला किया पोस्ट पर कब्ज़ा करने के लिये। नाइक जादू नाथ सिंह अच्छी हालत में नहीं थे और बिलकुल अकेले थे। उनके चारों और अपने ही साथियों के निर्जीव शव पड़े थे।

जादू नाथ सिंह दुश्मनों के तीसरे हमले का जवाब देने के लिए उठ खड़े हुए। वे अपनी ट्रेंच से बाहर निकल आये और अपनी स्टेन गन दुश्मनों की ओर कर के फायरिंग करने लगे। इससे दुश्मन आश्चर्य में आ गये।

आखिर में दुश्मन की एक गोली उनके सीने में लगी और दूसरी उनके सर में।

युद्ध में उच्चतम युद्ध साहस और वीरता के कारन नाइक जादू नाथ सिंह को  मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

नोट : - एक खेल स्टेडियम उनके नाम पर उनके जन्मस्थान शाहजहाँपुर - उत्तर प्रदेश में है।

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